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शाश्वत सत्य

24 नवम्बर 2021

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जीवन ईश्वर की दी अनुपम कृति है और मनुष्य मन, वाणी और कर्म की एकरूपता रखने के कारण इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी।
इस सृष्टि में मन और वाणी की विशेषता और उसे कर्म में ढालने की शक्ति सिर्फ मनुष्य को ही प्राप्त हुई है।संसार में आदर्श माने जाने वाले महान व्यक्तियों का व्यक्तित्व इसी विशेषता के कारण महान बन सका। भगवान बुद्ध,महावीर,महात्मा गांधी,वल्लभ भाई पटेल,
लालबहादुर शास्त्री, भगतसिंह ,ऐसे ही जाने कितने लोग हैं,जिनकी अपनी विचारधारा थी ,वे जो सोचते थे,वही अपनी वाणी से उद्धृत करते और उसे कर्म रूप में साकार करके समाज के लिए आदर्श उपस्थित करते थे।
कथनी-करनी का अंतर रखने वाले मनुष्य न तो किसी का आदर्श बनते हैं और न ही समाज को कोई दिशा दे पाते हैं।मतिभ्रम और मतभेद उत्पन्न करने में इनका कोई सानी नहीं।आज
दुर्भाग्य से हमारे देश में उच्च पदों पर ऐसे ही लोग आसीन हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों के पतन का कारण भी यही है।सच्चा मनुष्य सदैव मन-वाणी-कर्म का समन्वय बनाकर चलता है।यह मानवीय आचरण का एक विशिष्ट अंग है।भक्त शिरोमणि तुलसीदास ने भी कहा है-"पर उपदेश कुशल बहुतेरे"
उपदेश देकर कुशलता की कामना करने वाले लोग बहुत होते हैं।पर किसी के भले के लिए कार्य करने वाले समाज में ढूंढने से भी नहीं मिलते।संत कबीर की तरह-
सुखिया सब संसार है,खाए और सोए
दुखिया दास कबीर है,जागे और रोए।
दूसरों के दुख देखकर करुणा विगलित होने वाली पुण्यात्मा अब कहां है।जब तक मन-वाणी-कर्म में एकरुपता नहीं होगी, सफलता हमसे कोसों दूर रहेगी।थोथे गाल बजाने या ढोल पीटने वाले आचरण पतित व्यक्ति समाज को पतन की ओर ले जाते हैं।
महाभारत के युद्ध में परिजनों को समक्ष देख अर्जुन विचलित हो उठे।उनका मन यह मानने को तैयार ही नहीं था कि मुझे अपने ही गुरुजनों और परिजनों से युद्ध लड़ना है।उनका भय उनकी कायरता का कारण बना तब कर्म योगी कृष्ण ने उन्हें मन-वाणी-कर्म में सामंजस्य स्थापित करने का संदेश दिया। संपूर्ण गीता का सार यही है, मनुष्य निमित्त मात्र है, ईश्वर ने उसे मन-बुद्धि-कर्म से श्रृंगारित कर धरती पर इसलिए भेजा है ताकि वह ईश्वर के सौंपे दायित्व पूरे कर सके। कामायनी में मन मनु का,हृदय श्रद्धा का और बुद्धि इड़ा का प्रतीक है।मन के दोनों पक्ष हृदय और बुद्धि का
सुंदर समन्वय ही लोक कल्याण के सार्वभौमिक सत्य का निमित्त बनता है।
इस बात को स्पष्ट करने के लिए मैं एक उदाहरण जो मेरे ही जीवन से संबंधित है ,बताती हूँ,दरअसल मेरा विवाह जल्दी होने के कारण मेरी शिक्षा अधूरी रह गई और मैं कोई डिग्री नहीं ले पाई।मेरे मन में विवाह के बाद इस बात को लेकर द्वंद्व मचा रहता। हमारे यहां एक ज्योतिषी आते थे ,मैंने एक दिन उन्हें अपना हाथ दिखाया तो वो बोले कि तुम्हारे हाथ में शिक्षा की लकीर ही नहीं है।मन विचलित हो गया।विवाह के आठ साल बाद एक दिन मेरे पति ने मेरे चाव को देखते हुए आगे पढ़ने का प्रस्ताव रखा।मुंह मांगी मुराद पूरी हो रही थी,पर समस्या यहाँ भी थी।बारह-तेरह जनों के परिवार और दो छोटे बच्चों के साथ यह कार्य एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा था।लेकिन जब आगे बढ़ना था तो डरना क्या??सारा काम निपटा कर जो भी आराम का समय मिलता वो पढ़ाई में लगा दिया और एम.फिल में यूनिवर्सिटी टाॅपर रही।कई सालों बाद फिर ज्योतिषी को हाथ दिखाया,वही बात उन्होंने दोहराई तो मैंने सच बताया कि मेरे पास तीन-तीन डिग्री है। उन्होंने कहा तुमने सोचा और करके दिखाया और अपनी शिक्षा पूरी की। लेकिन मेरी बात भी सच है।
यह जीवन का सत्य है।मात्र ख्याली पुलाव पकाने या हवाई किले बनाने से जीवन में सफलता नहीं आती ,सफलता के लिए संघर्ष करना पड़ता है। मुझे कवि सोहनलाल द्विवेदी की पंक्तियां याद आ रहीं हैं-

कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम।
साधना से मुड़कर सिहरते रहे तुम।।
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा।
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ।।

मन में विचार करना या सपने देखना बुरा नहीं है क्योंकि ये हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं।इन सपनों को बोलकर पूरा नहीं किया जा सकता ,उसके लिए कर्म पथ पर चलने की आवश्यकता है। महामहिम ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी कहा है-"हर व्यक्ति को महान सपने देखने चाहिए और उन सपनों को पूरा करने का प्रयास भी अवश्य करना चाहिए ।ये सपने जीवन को सही राह दिखाते हैं।"उनका स्वयं का व्यक्तित्व भी मनसा वाचा कर्मणा का प्रतिबिंब है।अत्यंत गरीब परिवार में जन्मे कलाम अपने सपनों और कर्मों के कारण ही 'मिसाइल मैन' कहलाए।यहां तक कि अपने व्यक्तित्व के कारण भारत के राष्ट्रपति बने ।उनकी कथनी और करनी में सदैव समानता रही।हमारी संस्कृति में मन- वचन -कर्म को सदैव सर्वोपरि माना गया है। रामचरितमानस में-"रघुकुल रीत सदा चलि आई।प्राण जाए पर वचन न जाई।" यह रीत सिर्फ रघुकुल की नहीं बल्कि संपूर्ण मानव समाज की होनी चाहिए पर वर्तमान में ऐसा कहाँ दिखता है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग कर्म से मुँह चुराते देखें जाते हैं।अंत में मेरी छोटी सी एक कविता-

बोलता है आज मन
एक लिख दूं नव कहानी
सो गई जो नींद लंबी
वो नहीं होती जवानी।

पत्थरों को तोड़ती
बहती नदी रुकती नहीं है
ये हवा देती उड़ा सब
देख लेकिन थमती नहीं है
लीक से हट कर चले जो
है अमर उनकी ही वाणी।।

खाई खंदक हो भले ही
हों गगन के दूर तारे
फूल पथ में न बिछे हों
शूल के दिखते नजारे
सोच में बसती है मंजिल
मुश्किलें भी भरती पानी।।

हाथ में सूरज लिए जो
रोज उसका ताप सहते
सोचते करते वही वे
बोल उनके जो भी कहते
घाव तन पर झेलते पर
कौन उनका होता सानी।


अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक



रेणु

रेणु

बहुत बढ़िया प्रस्तुति अभिलाषा जी। जीवन के शाश्वत सत्य को आपने बहुत ही सटीकता से सामने रखा है। आपने अपनी कर्मठता से अपना लक्ष्य हासिल किया और ज्योतिषी की वाणी और दावे को मिथ्या साबित किया ये इस बात का सशक्त प्रमाण है कि इन्सान का भाग्य हाथों की लकीरों में नहीं उसकी लगन और समर्पण में छुपा है। कर्मठ ता की महिमा बढ़ाती रचना सोने पर सुहागा है। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको 🙏🙏❤️❤️🌷🌷

24 नवम्बर 2021

अभिलाषा चौहान

अभिलाषा चौहान

25 नवम्बर 2021

सहृदय आभार सखी 🙏 सादर

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जिंदगी सिगरेट-सी

27 जुलाई 2019
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धीमे-धीमे सुलगती,जिंदगी सिगरेट-सी।तनाव से जल रही,हो रही धुआं-धुआं।जिंदगी सिगरेट-सी,दुख की लगी तीली !भभक कर जल उठी,घुलने लगा जहर फिर!सांस-सांस घुट उठी,जिंदगी सिगरेट- सी ।रोग दोस्त बन गए,फिज़ा में जहर मिल गए।ग़म ने जब जकड़ लिया,खाट को पकड़ लिया।मति भ्रष्ट हो चली,जिंदगी सिगरेट- सी।धीमे-धीमे जल उठी,फूंक

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आखिर क्यों..???

27 जुलाई 2019
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तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्

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बूढ़ी औरत

29 जुलाई 2019
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वो बूढ़ी औरत बड़ी देर से व्याकुल सी स्टेशन पर किसी को ढूंढ रही थी। मालती बड़ी देर से उसे देख रही थी ,उसकी ट्रेन एक घंटा लेट थी । उसने महसूस किया कि वृद्धा का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं था ।दुबली-पतली, झुर्रियों से भरा चेहरा,उलझे हुए से बाल ,अजीब सी चोगे जैसी पोशाक पहने ,हाथ में एक पोटली थामे जमीन पर

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हूं मैं एक अबूझ पहेली

31 जुलाई 2019
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भीड़ से घिरी लेकिनबिल्कुल अकेली हूं मैंहां, एक अबूझ पहेली हूं मैंकहने को सब अपने मेरेरहे सदा मुझको हैं घेरेपर समझे कोई न मन मेराखामोशियो ने मुझको घेराढूंढूं मैं अपना स्थान...जिसका नहीं किसी को ज्ञानक्या अस्तित्व है घर में मेरा?क्या है अपनी मेरी पहचान?अपने दर्द में बिल्कुल अकेलीहूं मैं एक अबूझ पहेली

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गिद्ध

6 अगस्त 2019
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गिद्ध ये नाम सुनते ही वह पक्षी स्मरण होआता है,जो मृत प्राणियों को अपना आहारबनाता है।पर अब सुना है कि गिद्धों की संख्या कम हो गई है या यूं कहें कि आदमी मेंगिद्ध की प्रवृति ने जन्म ले लिया है,जो जिंदाइंसानों को भी अपना शिकार बना लेती है।शायद यही कारण है कि गिद्ध अब नहीं

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कीमो

20 अगस्त 2019
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आज-कल मुझे अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं,क्योंकि मेरी मां को कैंसर हुआ है और उनकी कीमोथेरेपीचल रही है,जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगी हूं। मैंआपको यह सब बता रही हूं,इसका ये मतलब बिल्कुलनहीं कि मैं अपना दुखड़ा रो रही हूं,बल्कि वहां जो मुझेअनुभव हुआ,उसे आपसे बा

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एहसास है मुझे

28 अगस्त 2019
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एहसास है मुझे,वह दर्द जो तूने जिया...वह जख्म जो तुझे ,दुनिया ने दिया।एहसास है मुझे,उस अकेलेपन का..उस तड़पते दिल का..जिसे चाह थी,बूंद भर प्यार की..परिवार के दुलार की..!एहसास है मुझे,उन आंसुओं का..जो तेरी आंख से बहे..उस टूटे हृदय का..उस वेदना का..उस तड़प का..।तेरा एहसास,जो दर्द बनकर,जख्म के रूप में जि

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दिल जिंदा रहा तो...!!

27 सितम्बर 2019
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क्यों बढ़ रही दिलों में दूरियां,क्या हो गई ऐसी मजबूरियां ।क्यों दिलों की बात कोई सुनता नहीं,क्यों स्वार्थ बन रहा कमजोरियां।भावनाओं को यूं दिल में दफन न करो,दिल की आवाज यूं अनसुनी न करो।यूं अकेले सफर कट सकता नहीं,अकेले रहने का यूं दिखावा न करो।दिल मुरझा गया तो कैसे जी पाओगे,जिंदगी का बोझ न इसतरह ढो प

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कल,आज और कल

29 सितम्बर 2019
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तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,झेलता वह मासूम।सुबकता,सिसकता,आंसू पौंछता।खोजता अपने अपराध,शनै-शनै मरता बचपन!आक्रोश का ज्वालामुखी,उसके अंदर लेता आकार।शरीर पर चोटों की मार,बनाती उसे पत्थर!पनपता एक विष-वृक्षजलती प्रतिशोध की ज्वाला!पी जाती उसकी मासूमियत।वक्त से पहले ही होता बड़ा,समझता शत्रु समाज को,चल पड़ता पाप

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लेखक का मौत से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2019
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प्रकाश एक बेहतरीन लेखक था,पाठक उसकी रचनाओ की प्रतीक्षा करते थे। कहानी हो या उपन्यास या फिर कविता उसकी लेखनी कमाल की थी और पात्र-चयन तो और भी उत्तम।पिछले कुछ दिनों से वित्तीय समस्या के कारण वह तनाव में चल रहा था ,इससे उसका लेखन भी अछूता नहीं रहा था।वह एक कहानी लिख रहा

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बूढ़ा दरख्त

30 दिसम्बर 2019
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5 मििजाने कितने वर्षों से वह बरगद का वृक्ष उस चौपड पर खड़ा अतीत की न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी था, न जाने कितने जीव-जंतुओं, पथिकों की शरणस्थली था। आज उदासी से घिरा था, वर्तमान परिवेश में उसे अपने ऊपर आने वाले संकट का एहसास था, लोगों की बदली हुई मानसिकता ने उसे हिला

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'अभि'की कुण्डलियाँ

30 दिसम्बर 2019
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टूटा कुनबा देख के, मुखिया हुआ निराश।तिनके जैसा उड़ गया,जीवन से विश्वास।जीवन से विश्वास,प्रेम जब उसका हारा।जीत गया है स्वार्थ,कहाँ अब रहा सहारा।कहती 'अभि' निज बात,पटाखा जैसे फूटा।उड़ी घृणा की धुंध,और फिर कुनबा टूटा।प्यारी पीहर की लगे ,मुझको सारी बात।पक्षी जैसी मैं उड़ी, छूटे भगिनी-भ्रात।छूटे भगिनी-भ्

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या

3 फरवरी 2020
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हिन्दी भाषा का मानक रूप आज अशुद्ध शब्दों के प्रयोग के कारण लुप्त सा होता जा रहा है।यह चिंतनीय विषय है।हिंदी विस्तृत भू-भाग की भाषा है। क्षेत्रीय बोलियों के संपर्क में आने से शुद्ध शब्दों का स्वरूप बदल जाता है।अहिंदी भाषियों के द्वारा भी हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में किया जाता हैजिसके कारण श

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या-2

9 फरवरी 2020
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आदरणीय मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत श्री संजय कौशिक'विज्ञात'जी और सखी नीतू ठाकुर'विदुषी'जी चाहते हैं कि मैं इस समस्या पर और कार्य करूँ।करना भी चाहती हूँ,पर सोचती हूँ क्या मेरे लिख देने मात्र से कोई क्रांति संभव है??मेरे विचार से इसका उत्तर"नहीं"है।आज लाखों लोग सोशल मीडिया पर साहित्य सेवा में लीन हैं।क

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जैसे सब कुछ भूल रहा था

31 मार्च 2020
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नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,नेह हृदय कुछ बोल रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरे,जैसे सबकुछ भूल रहा था।अम्बर पर बदरी छाई थी,दुख की गठरी लादे भागे।नयनों से सावन बरसे थाप्यासा मन क्यों तरस रहा था।खोया-खोया जीवन मेराचातक बन कर तड़प रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरेजैसे सब कुछ भ

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शब्द संपदा-कुछ दोहे

27 अप्रैल 2020
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गीतापार्थ उठाओ शस्त्र तुम,करो अधर्म का अंत।रणभूमि में कृष्ण कहे,गीता ज्ञान अनंत।।कर्मयोग के ज्ञान का,अनुपम दे संदेश।गीता जीवन सार है,जिससे कटते क्लेश।।पतवारसाहस की पतवार हो,संकल्पों को थाम।पाना अपने लक्ष्य को,करना अपना नाम।।अक्षरअक्षर अच्युत अजर हैं, कण-कण में विस्तार।वही अनादि अनंत हैं,इस जीवन का स

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कोरोना 'महामारी'

4 मई 2020
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विज्ञात छंदमुक्तक एक प्रयासदेख लगे न कोरोनाहाथ हमें सदा धोनादूर रहो करो बातेंजान कभी नहीं खोना।देख बड़ी महामारीजीवन पे पड़े भारीचूक गया जहाँ कोईसाथ चली नहीं हारी।अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'स्वरचित मौलिक

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शब्द संपदा -दोहावली

15 मई 2020
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*वक्तवक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।*कविताकविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।*भावभाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।*प्रेम प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह

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शिव वंदना

19 मई 2020
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अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणिविष्णुवल्लभ योगी दिगंबरत्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणिअष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर।ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतरऊर्जित परम करे उत्साहितअनादि अनंत अभेद शाश्वतकण-कण में वह सदा प्रवाहित।।अज सर्व भव शंभू महेश्वरनीलकंठ हे भीम पिनाकीत्रिलोकेश कवची गंगाधरपरशुहस्त हे जगद्वयापीॐ निनाद में शून्य सनातन

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अणु कोरोना हार चलेगा

21 मई 2020
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हाहाकार मचा है जग मेंकैसे बेड़ा पार लगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगालाशों के अंबार लगे हैंबिछड़ रहे अपनों से अपनेसाँसों की टूटी डोरी मेंटूट रहें हैं सपने कितनेबंदी जीवन भय का घेरालेकिन सुख का सूर्य उगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगा।।काल कठोर भयंकर भारीनिर्धन को अब भूख निगल

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और गांव की याद आई

27 मई 2020
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एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ

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शब्द संपदा-दोहावली

14 जून 2020
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पावस*पावस बूंँदों से हुई,शीतल धरती आज।चंचल चपला दामिनी,मेघों का है राज।*मानसून*मानसून ने कर दिया,जग जीवन खुशहाल।कृषक खेत में झूमता,बदला उसका काल।*वारिद*नभ में वारिद छा गए,देख नाचते मोर।विरहिन के नयना झरे,देख घटा घनघोर।*पछुआ*पछुआ ले बादल उड़ी,देख टूटती आस।हलधर बैठा खेत में,होता बड़ा निराश।*कृषक*ऋण के

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वो कली मासूम सी

26 दिसम्बर 2020
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बेड़ियों ने रूप बदलेरख दिया तन को सजाकरवो कली मासूम सी जोदेखती सब मुस्कुराकर।शूल बोए जा रहे थेरीतियों की आड़ में जबखेल सा लगता उसे थाजानती सच ये भला कबछिन रहा बचपन उसी कापड़ रहीं थीं सात भाँवर।।छूटता घर आँगना अबनयन से नदियाँ बहीं फिरहाथ में गुड़िया लिए थीबंधनों से अब गई घिरआज नन्हें पग दिखाएँघाव सा

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विश्व गुर्दा दिवस पर विशेष

10 मार्च 2021
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कल विश्व गुर्दा दिवस है।इसका उद्देश्य है लोगों में गुर्दे और गुर्दे से संबंधित बीमारियों को लेकर जागरूकता पैदा करना। ईश्वर न करे कभी किसी को गुर्दे से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़े और यदि ऐसा हो जाए तो अपनों के जीवन को बचाने के लिए हमें गुर्दा प्रत्यारोपण से पीछे नहीं हटना चाहिए।आज के इस युग

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वीरों के वीर राणा सांगा

23 नवम्बर 2021
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<p>राणा सांगा के जीवन की चंद झलकियां आल्हा छंद में चित्रित करने का प्रयास</p> <p>सबका वंदन मैं करुँ,

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शाश्वत सत्य

24 नवम्बर 2021
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<p><br> <br> जीवन ईश्वर की दी अनुपम कृति है और मनुष्य मन, वाणी और कर्म की एकरूपता रखने के कारण इस सृ

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