'विश्व हिंदी दिवस', किस दिन आता है? इसका पता लगते से ही मन में स्वतः ही राष्ट्रभक्ति जाग उठती है। 'इंडिया' को 'भारत' बोलने का मन करता है और तो और २ से ५ मिनट के लिए अनायास ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। फिर अगले कुछ दिनों या महीनो या सालो तक या यूँ कहे कि 'विश्व हिंदी दिवस' के पता लगने तक ये हिंदी प्रेम, कुम्भकरण की भांति निद्रा काल में चला जाता है।
हम तो हर समय अंग्रेजी भाषा को सर पर बैठाये रहते है। यदि कोई फर्राटेदार अंग्रेजी भाषा बोलता हुआ दिख जाता है तो उस से अधिक सम्मानीय हमे कोई नहीं लगता। किस अंग्रेजी भाषा धारी द्वारा अंग्रेजी भाषा में पूछे जाने वाले प्रश्न का उत्तर यदि हमने हिंदी भाषा में दे दिया तो ये एक निंदनीय घटना हो जाती है। जिसका खेद हमे चार दिन तक होता है। वो अंग्रेजी वार हमारी हिंदी अन्तर आत्मा को छलनी कर देता है।
उसका ये हमला हमे यही तक ही नहीं छोड़ता बल्कि ये हमे मानसिक उत्पीड़ित करता है। तब तक, जब तक की हम या तो इसे अच्छे से सीख ले या इन अंग्रेजी भाषा की गलियों में आना छोड़ दे। अंग्रेजी भाषा अगर अच्छे से सीख ली तो वारे न्यारे हो जाते है और हम भी वैसे ही अंग्रेज़ो भाषाधारी बन जाते है। और यदि ना सीख पाए तो इस विघात की कुंठा में शेष जीवन व्यतीत करते है। कुल मिलाकर विजय पताका अंग्रेजी की ही लहराती है।
अब प्रश्न ये उठता है कि आम हिंदीजन अंग्रेज़ी ना बोल/लिख पाने के कारण इतना भयभीत क्यों होता है। ये परिवेश भी अंग्रेजी भाषा धारियो की ही देन है। इन्होने इतना भयावह जाल बना हुआ है कि हर व्यक्ति इसमें उलझता ही है। अंग्रेजी बोलने की असमर्थता का उपहास उड़ाया जाता है। सही से अंग्रेजी उच्चारण ना करने पर हंसी का पात्र बनाया जाता है। गलती से यदि 'वर्ब' की 'थर्ड फॉर्म' की जगह 'सेकंड फॉर्म' लगा दी तो आप अनपढ़ ही सिद्ध किये जाते हो।
अब इन अंग्रेजी भाषा धारियों कौन समझाए कि ये निरा मायाजाल है। इसके अलावा कुछ और नहीं है। जिसका इन्होने हव्वा बना रखा है। अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान होना एक 'ऐड-ऑन', एक अतिरिक्त कौशल है जिसका उपयोग विदेशी लोगो के साथ व्यवसाय, ट्रेड आदि करने में उपयोगी है। इसके अलावा इसका भारत में कोई काम नहीं है। इसका हिंदी भाषा के उपहास बनाने में कोई कारण कोई तर्क नहीं है। जिस अंग्रेजी भाषा बोलने पर लोगो को गर्व होता है उसके मूल ही कितने हिले हुए है। जो लिखा है उसे कभी कैसे, तो कभी कैसे पढ़ा जाता है। अब अंग्रेजी की क्या ही बात की जाए।
हमारी हिंदी भाषा में तो ऐसा बिलकुल नहीं है। जो लिखा वो ही पढ़ना होता है। एक-एक अक्षर स्पष्ट है। और इसे बोलने पर जो मधुर भाव उत्पन्न होते है, उसके तो आनंद ही निराले है। हमे तो उस दिन की प्रतीक्षा है जिस दिन हर भारतीय को हिंदी बोलने और सुनने पर उपहास का पात्र ना बनना पड़े। तब जाकर ये हिंदी दिवस सही मायने में सार्थक होगा। किन्तु इसका ये अर्थ नहीं की आज इस 'विश्व हिंदी दिवस' की गरिमा में कही कोई कमी रह जाती है। आज भी हमे गर्व है हमारे भारतीय होने पर और हिन्दी भाषी होने पर।
विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक बधाईया!