एक वर्ष और स्वतंत्रता का..
आकर चला गया..
महँगाई..भ्रष्टाचार और अनगिनत रेप के बीच,
इस स्वतंत्र धरती के..
खुले आकाश में..
दम घुँट रहा है..
बस शरीर जीवित है,
कोई सरकार पर आरोप लगा रहा है..
सरकार विपक्ष पर..
विपक्ष सरकार की टांग खींच रहा है..
और जनता भूखी मर रही है,
जिन वस्तुओं की जरुरत नहीं है..
वो सस्ती मिल रही है..
और जरुरत की वस्तुऍ..
खरीद नहीं पा रहे है,
कठपुतली बन गए हम सब..
जो बैठता है कुर्सी पर..
वो नचाये जा रहा है,
स्वतंत्र है या गुलाम अभी भी..
इसी उलझन के साथ..
आप सभी को..
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये !!