गीता ।
अच्छा नाम है।
लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।
क्यों?
कोई एक कारण हो तो बताएँ। यह कहते हुए गीता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टाँगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। श्याम उसे जाते हुए देखता रहा। उसके जाने के बाद उसने टाइपराइटर पर निगाह डाली। टाइपराइटर उसे उदास लगा।
और दुनिया बदल गई
इसी दिन से श्याम हवा में उड़ने लगा। रातों को छत पर घूमने लगा। तारे गिनता और उनसे बातें करता। चाँदनी रात में बैठकर कविताएँ लिखता। गर्मी की धूप उसे गुनगुनी लगने लगी। दुनिया गुलाबी हो गई तो जिंदगी गुलाब का फूल। आँखों से नींद गायब हो गई। वह ख्यालों ही ख्यालों में पैदल ही कई-कई किलोमीटर घूम आता।
अपनी इस स्थिति के बारे में उसने अपने एक दोस्त को बताया तो उसने कहाँ 'गुरु तुम्हें प्यार हो गया है।' दोस्त की बात सुनकर उसे अच्छा लगा।
अगले दिन श्याम ने गीता से कहा कि आप पर एक कविता लिखी है। चाहता हूँ कि आप इसे पढ़ें।
यह भी खूब रही। जान न पहचान। तू मेरा मेहमान। कितना जानते हैं आप मुझे?'
जो भी जानता हूँ उसी आधार पर लिखा हूँ।
गीता उसकी लिखी कविता पढ़ने लगी।,
गीता,
कल-कल करके बहने वाली जलधारा
लोगों की प्यास बुझाती
किसानों के खेतों को सींचती
राह में आती हैं बहुत बाधा
फिर भी मिलती है सागर से
उसके प्रेम में सागर
साहिल पर पटकता है सिर
उनके प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रमाण
पूर्णमासी की रात में
उठने वाला ज्वार-भाटा
गीता है तो सागर है
गीता के बिना रेगिस्तान हो जाएगा सागर
सागर के प्रेम में
गीता लाँघती है पहाड़, पठार
और मानव निर्मित बाधाओं को