कार्तिक-कृष्णपक्ष चौथ का चाँद देखती हैं सुहागिनें आटा छलनी से.... उर्ध्व-क्षैतिज तारों के जाल से दिखता चाँद सुनाता है दो दिलों का अंतर्नाद। सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प होता नहीं जिसका विकल्प एक ही अक्स समाया रहता आँख से ह्रदय तक जीवनसाथी को समर्पित निर्जला व्रत चंद्रोदय तक। छलनी से छनकर आती