कार्तिक-कृष्णपक्ष चौथ का चाँद
देखती हैं सुहागिनें
आटा छलनी से....
उर्ध्व-क्षैतिज तारों के जाल से दिखता चाँद
सुनाता है दो दिलों का अंतर्नाद।
सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प
होता नहीं जिसका विकल्प
एक ही अक्स समाया रहता
आँख से ह्रदय तक
जीवनसाथी को समर्पित
निर्जला व्रत चंद्रोदय तक।
छलनी से छनकर आती चाँदनी में होती है
सुरमयी सौम्य सरस अतीव ऊर्जा
शीतल एहसास से हिय हिलोरें लेता
होता नज़रों के बीच जब छलनी-सा पर्दा।
बे-शक चाँद पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है
वहां जीवन अनुपलब्ध है
ऑक्सीजन अनुपलब्ध है
ग्रेविटी में छह गुना अंतर है
दूरी 3,84,400 किलोमीटर है
फिर भी चाँद हमारी संस्कृति की महकती ख़ुशबू है
जो महकाती है जीवन पल-पल जीवनभर ......!
#रवींद्र सिंह यादव