ये आशिक तेरा आवारा तेरी सादगी पर मरता है सच कहता हूं आज भी दिल से मोहब्बत करता हुं
ये जालिम जमाने का तुझे क्या दस्तूर पता
मेरी मोहब्बत को बे हलाल कहता है
सुनता हूं जब मैं दिल की बे-मौत सा मरता हूं
तेरी हिस्से में की ना इंसाफी ये सोच सोच कर डरता हूं ।
तेरा बेवफा का यु ईल्म देना
दिल में एक टीस सी देती है ।
आज भी हवाओं में तेरा नाम सुनता हूं
ये मस्तानी मौसम देखकर तुझे याद कर करके रोता हूं ।
कुछ कहता नहीं बस हवाओं से बात करता हूं
जब यह हवा मेरी रूह को छू कर गुजरती है
बरसों बीते सारी याद हमें दिलाती है
देखो ना रात भी वही याद भी वही मौसम भी वही बस दुरियां है कितनी
किस तरह समझाऊं तुझे अपने जज्बातों को
रात है आधी सारा जमाना सोया है
तलपत मीन की तरह मैं बेचैन होकर रोया हूं
मैं बेचैन होकर रोया
मिश्रा जी ✍️✍️✍️✍️✍️