घनघोर विपत्ति आई है
घनघोर विपत्ति आई हैघनघोर विपत्ति आई है
एक तरफ कोरोना तो दूसरी तरफ बाढ़ भी आई है
यह आंधी तूफान भी हमें कहां छोड़ रही है
हम गरीब है हमें फुस की टूटी मड़ैया ही नसीब है
ना जाने क्यों खुदा तू हमसे नाराज हैं
हमें छोड़ इस भंवर में तु दूर कैलाश पर्वत पर विराजमान है
हमारी क्या गलती है जो
हम पे एक साथ इतनी विपत्ति आई है
आज हमारी सहनशक्ति भी साथ छोड़ रही है
एक मन में जो धीरज थी वह भी टूट सी रही है
आज नजर के सामने बच्चे भी बिलख रहे हैं
भूख में दर्द से कराह रहे हैं
हमारी खुद की मेहनत पानी पानी हो रही है
यह प्राकृतिक आपदा भी हमें क्यु इतना सता रही है
यह बाढ़ का पानी घर घर घुस रही है
ऊपर से आंधी तूफान भी ऊपरी तलैया उड़ा ले जा रही है
कौन सी गलती की हमें ये सजा मिल रही है
क्या हम गरीब है इसी का एहसास ये दिला रही है
आज खुद की मेहनत भी पानी में मिल गई
हमें हमारी जिंदगी से यह रूबरू करा रही है
आज बूढ़ी अम्मा भी बुखार में तड़प रही है
ना जाने क्यों मैंने विचित्र सा ख्याल आ रहा हैं
लगता है बुढी अम्मा की प्राण जाने की घड़ी है
जलाने के लिए 2 गज जमीं नसीब नहीं है
चारों तरफ पानी ही पानी से चला मग्न हो रही है
ए खुदा तू रहम कर ये कैसी घड़ी हम पे छाई है
हम तो अज्ञान हैं
तु क्यु ज्ञानवान होकर एक ही जगह विराजमान हैं
थोड़ी आसन हिला दे थोड़ी महिमा दिखा दे
ये बच्चे को भूख से अम्मा को बुखार से बचा ले
हम सबकी जिंदगी तेरे हाथों में है
सबकी जिंदगी बक्श दे या हमें अपने पास बुला लो
ए खुदा कुछ तो रहम कर दे