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जिम्मेदारी

9 जनवरी 2022

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कभी - कभी देखती हूं हाथों के लकीरों को ।

क्या लिखा है इसमें,

ना सुबह की चैन

ना शाम को आराम लिखा है ।

बस चलते रहना ही हमारा काम लिखा है ।

वक्त को बदलते देखा है हमने

अक्सर परिस्थितियां भी बदल जाया करती है ।

कभी मैं घर की छोटी नन्ही परी हुआ करती थी ।

वक्त के साथ आज घर के रोटी हुआ करती हूं ।

जिम्मेदारी तले इतनी दबी जा रही हूं ।

खुद का न खयाल है ।

एक आशियाना बनाने में मेरा सारा जीवन बेहाल है

खुद के बारे में कभी जब सोचती हूं ।

ख्याल मन में आता है

एक चिड़िया परिंदा सा उड़ता हुआ आसमान में नजर आता है ।

वह परिंदा जिसे ना गिरने का डर  ना ऊंचाइयों का भय ।

बस जैसे कि दाना चुनना ही उसका काम है ।

हां यह सच है कि वह सैर पुरा आसमा का करती है ।

कुछ हासिल ना हो सही पर तजुर्बा सबसे बड़ी रखती है ।

अपनी खुशी छोड़कर

जंग के मैदान में दौड़ पड़ती हुं ।

जितनी जिम्मेदारी ली हूं ।

उसे पूरा करने की भरसक प्रयास करती हूं। ।

बस अपनों का प्यार और साथ चाहती हूं ।

चाहे जितनी भी हो मुश्किल सबका हौसले बुलंद रखती हूं ।

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