ज्योति मिश्रा बीए की छात्रा हूं और कविता लेखन व कहानी लेखन की इच्छा रखती हूं और लिखती भी हूं
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ये आशिक तेरा आवारा तेरी सादगी पर मरता है सच कहता हूं आज भी दिल से मोहब्बत करता हुं ये जालिम जमाने का तुझे क्या दस्तूर पता मेरी मोहब्बत को बे हलाल कहता है सुनता हूं जब मैं दिल की बे-मौत सा मरता हूं
कभी - कभी देखती हूं हाथों के लकीरों को । क्या लिखा है इसमें, ना सुबह की चैन ना शाम को आराम लिखा है । बस चलते रहना ही हमारा काम लिखा है । वक्त को बदलते देखा है हमने अक्सर परिस्थितियां भी बदल जाया करती
<p>घनघोर विपत्ति आई है</p> <p>घनघोर विपत्ति आई हैघनघोर विपत्ति आई है</p> <p>एक तरफ कोरोना तो दूसरी त
<p>कैसी अजीब दास्तां होती है यह मोहब्बत करने वालों की ।।</p> <p>।कैसी अजीब दास्तां होती है यह मोहब्ब