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योग - परिवेश की जीवंतताओं को जोडना ही योग है

21 जून 2016

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समाज में जीवन में जहां कहीं भी जो कुछ सकारात्‍मक है उसे परस्‍पर जोडना ही योग है। इसमें किसी तरह की घृणा के लिए कोई जगह नहीं है।शरीरकेस्‍तरपरतनमनकीशक्तियेांकोएकजगहकेंद्रितकरनायेागहै।यहअपनीशक्तियोंकोइकटठाकरउसकाकेंद्रीकृतप्रयोगहै।येागासनयोगकाएकहिस्‍सामात्रहै।

कुत्‍ता बिल्‍ली जिस तरह सो कर उठने के बाद अपने शरीर को तानते हैं उसी प्रक्रिया को जब मनुष्‍य करता है तो वह येाग कहलाता है। दरअसल इंसान ने अध्रिकांश चीजें पशुओं और प्रकृति से ही सीखा है। आदमी सिंह की तरह बहादुर होना चाहता है कोयल की तरह गाना चाहता है समुद्र की लहरों की तरह उछलना चाहता है हवा की तरह उडना चाहता है।

यूं अब आदमी इतना विकसित तो हो ही चुका है कि वह अब इससे आगे जाकर आदमी की तरह बरतना सीखे। आदमियों के उदाहरण अब कम नहीं कि हम पहले की तरह पशु पक्षियों के उदाहरणों का इस्‍तेमाल करें। आज की तारीख में सिंह की तरह होने की कामना पशुवत कामना है। सिंह बाघ आज दुनिया से मिट रहे हैं वे कोई अच्‍छे उदाहरण नहीं है कि हम उनकी तरह होने की कामना करें।

ये कामनाएं तब की हैं जब आदमी पशु से अलग हुआ था और उन पर आश्रित था। वह खुद को उनका ही हिस्‍सा समझता था। पर आज पशुता के मुकाबले आदमीयत अगर बेहतर शब्‍द है तो जरूरत नहीं कि हम बाघ सिंह जैसे टाइटिल लगाएं और उनकी तरह होना चाहें।
कुमार मुकुल

कुमार मुकुल

योग के आठ अंग निम्‍न हैं - अष्‍टांग येाग - यम (पांच "परिहार"): अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति और गैर स्वामिगत. नियम (पांच "धार्मिक क्रिया"): पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण. आसन:मूलार्थक अर्थ "बैठने का आसन" और पतांजलि सूत्र में ध्यान प्राणायाम ("सांस को स्थगित रखना"): प्राणा, सांस, "अयामा ", को नियंत्रित करना या बंद करना। साथ ही जीवन शक्ति को नियंत्रण करने की व्याख्या की गयी है। प्रत्यहार ("अमूर्त"):बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार. धारणा ("एकाग्रता"): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना. ध्यान ("ध्यान"):ध्यान की वस्तु की प्रकृति गहन चिंतन. समाधि("विमुक्ति"):ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना। इसके दो प्रकार है - सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती। यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।

21 जून 2016

कुमार मुकुल

कुमार मुकुल

(१) पातंजल योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृत्त निरोधः (1/2) अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। (२) सांख्य दर्शन के अनुसार - पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है। (३) विष्णुपुराण के अनुसार - योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने। अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है। (४) भगवद्गीता के अनुसार - सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते। (2/48) अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है। (५) भगवद्गीता के अनुसार - तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्। अर्थात् कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है। (६) आचार्य हरिभद्र के अनुसार - मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो। मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है। (७) बौद्ध धर्म के अनुसार - कुशल चितैकग्गता योगः। अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।

21 जून 2016

गुरमुख सिंह

गुरमुख सिंह

परन्तु यहाँ तो मात्र शारिक ब्यायाम की भांति ही प्रचारित किया जाता प्रतीत होता है

21 जून 2016

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