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साहब की सोहबत

18 जून 2016

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सुबह नहा धोकर कसरत करने के बाद ‘क’ महाशय को लगा कि बाहर कोने में बैठना चाहिए, वहां ठंडी हवा होगी ‘रिल्के’ की कहानियों का अनुवाद हाथ

में ले प्लास्टिक की एक कुर्सी उठाए आ गए एक पेड़ के नीचे । 

हां, यहां हवा तेज है । नहाने से अभी भीेगे बालों से जब हवा लगी तो सिहरन सी हुई । फिर कुर्सी पर बैठे महाशय ‘क’ कितवाब पलटने लगे ।

अचानक उन्हें लाने में खड़, बड़-खड़, बड़ की आवाज सुनाई दी । उन्होंने देखा कि सामने उगी लंबी घासों में धोबनि चिड़ियों को झुंड सक्रिय हैं ।

 ‘क’ महाशय रूक कर उन्हें देखने लगे, वे उछल-उछल कर घास-पात को चोंच से उठा-उठाकर अपना भोजन तलाश रही थीं ।

महाशय ‘क’ ने सोचा -अच्छा तो ये सुबह-सुबह काम ‘शुरू कर देती है, जी तोड़-काम ही जीवन है।

अब ‘क’ महोदय खुद की बावत सोचने लगे । उन्होंने उठकर इस तरह चिड़ियों सा कोई काम किया या नहीं । हां- उठा, हाथ-मुह धोया । नहाया-कसरत किया । अब पढ रहा हूँ, पर इसमें चिड़ियों की तरह कोई मिहनत का काम तो नहीं हुआ।

 ‘क’ महाशय यह सोच ही रहे थे कि पड़ोसी का कुत्ता दीवार फाद लॉन में आ गया। अरे, यह कैसे छूट गया । डरे से वे कुछ समझते कि कुत्ता भी लॉन

में चिड़ियों की तरह कुछ ढूंढने लगा ।

तो, यह भी काम कर रहा है ।

पर, अरे    यह तो घास खा रहा है- ताबड़तोड़ ।

थोड़ी सी घास चरने के बाद उसने कुछ विचित्र हरकतें कीं, फिर लॉन के ही एक कोने में उल्टी कर दी ।

वे हां-हां करते दौड़े, तब-तक कुत्ता दीवार फांद अपने बाडे में जा चुका था।

वाजिव था, ‘क’ महाशय सोंचने लगे तो यह कुत्ता काम करने नहीं उल्टी करने आया था ।

मतलब, साहबों की सोहबत ।

रात में ज्यादा खाना, साहब तो बाथरूम गये होंगे यह आया इधर ।


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