रूडयार्ड
किपलिंग का जन्म बंबई में 30
दिसंबर 1865
को हुआ था ।
उनके माता-पिता
अंग्रेज थे । उनका बचपन बहुत
अच्छा नहीं था । आरंभ के छः सालों तक उनका
पालन-पोषण
भारतीय नर्सों ने किया । आगे
वे इंग्लैंड ले जाए गए ।
वहां फोस्टर परिवारों ने पांच
साल तक उनकी देखभाल की । इसके बाद उनका
दाखिला एक बोर्डिंग स्कूल
में करा दिया गया । वहां
उन्होंने
अखबारी काम और लेखन आरंभ किया
।
17 साल की
उम्र में किपलिंग फिर भारत
आए । यहां उन्होंने अपने आगामी सात साल -
पत्रिकाओं के
लिए कहानियां व कविताएं लिखते
बिताए । उनकी इन कहानियों
में बहुत सी भारतीय लोक कथाओं
पर आधारित थी । ये कथाएं किपलिंग
ने बचपन में अपने नर्सों से
सुनी थीं । कुछ कहानियां वन्य जीवों के
क्रिया-कलापों
से जुड़ी थीं । इन कहानियों ने
किपलिंग को
काफी ख्याति
दिलायी ।
वनय जीवों
की ये कहानियां द जंगल बुक में सकलित हैं, इनमें सर्वाधिक
चर्चित उनके कथा पात्र मोगली
की पंद्रह कहानियां हैं । मोगली पर
भारतीय दूरदर्शन ने एक सीरियल
भी दिखलाया था ।जो काफी
लोकप्रिय हुआ था । इस पर बनी हाल की फिल्म ने भी काफी कमाई की है।
किपलिंग
की इन कथाओं की विशेषता यह है कि इसमें जो
वनपशु कथापात्र बनकर आए हैं,
उनका व्यवहार
मानवीय हैं। भारतीय
जनजीवन से जुड़ी भारतीय चरित्रों
पर लिखी उनकी कहानियों, उपन्यासों
और कविताओं से उन्हें लगातार
प्रसिद्धि मिलती गई । 1905
में उनका एक चर्चित
उपन्यास किम आया । यह एक ग्रामीण
अनाथ लड़के की कहानी है ।
किपलिंग
की सबसे चर्चित कविता ‘गूंगा
दीन’ भी एक भारतीय लड़के पर केंद्रित
है, जो
अंग्रेज सैनिकों को पानी
पिलाते वक्त मारा जाता है । अपने जीवन
में किपलिंग ने छः उपन्यास,
बारह कहानी
संग्रह और पांच कविता संग्रह प्रकाशित
करवाए थे । 1907 में
साहित्य का नोबेल पुरस्कार
पाने वाले वे पहले ब्रिटिश
थे । 1936 में
उन्होंने एक आत्मकथात्मक
पुस्तक ‘समथिंग
आॅफ माईसेल्फ’
लिखी थी । इसी साल उनकी मृत्यु
हो गई।
कुमार मुकुल की अन्य किताबें
एम ए ( राजनीति विज्ञान ) ।1989 में अमान वीमेंस कालेज फुलवारी शरीफ] पटना में अध्यापन।1994 से 2005 के बीच हिन्दी की आधा दर्जन
पत्र-पत्रिकाओं अमर उजाला, पाटलिपुत्र टाइम्स, प्रभात खबर आदि में संवाददाता, उपसंपादक, संपादकीय
प्रभारी और फीचर संपादक के रूप में कार्य। 1998-2000 दैनिक 'अमर उजाला' के लिए पटना से संवाददाता के तौर पर
कार्य। इस दौरान अखबार में एक साप्ताहिक कॉलम 'बिहार : तंत्र जारी है' का लगातार लेखन। 2003 हैदराबाद 'स्टार फीचर्स' में संपादक के रूप में काम। 2003 में बेटे की कैंसर की बीमारी के चलते नियमित कार्य में बाधाएं।
इस बीच दिल्ली में साहित्यिक पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' में संपादकीय सहयोगी के रूप में काम। 2005
से 2007 के बीच
द्वैमासिक साहित्यिक लघु पत्रिका 'सम्प्रति पथ' का दो
वर्षों तक संपादन। 2007 से 2011 त्रैमासिक
'मनोवेद' में कार्यकारी संपादक के रूप में कार्य। 2013 से 2014 कल्पतरु एक्सप्रेस,
दैनिक, आगरा में स्थानीय संपादक। अप्रैल 2015 से दिल्ली के दैनिक देशबन्धु में स्थानीय संपादक के रूप में कार्य।
कृतियां: 2000 में रश्मिप्रिया प्रकाशन से ‘परिदृश्य के भीतर’ और 2006 में
मेधा बुक्स से ‘ग्यारह सितंबर और अन्य
कविताएं’ शीर्षक दो कविता संग्रह प्रकाशित। 2000 में ‘परिदृश्य के भीतर’ के लिए पटना पुस्तक मेले का ‘विद्यापति सम्मान। 2012 में प्रभात प्रकाशन से 'डा लोहिया और उनका जीवन-दर्शन' नामक
किताब प्रकाशित। 2013 में नई किताब प्रकाशन से 'अंधेरे में कविता के रंग'
नामक काव्यालोचना की पुस्तक प्रकाशित। 2014 'आज की कविता-प्रतिनिधि
स्वर' नामक पांच कवियों के संकलन मेे संकलित। सोनूबीती नाम से कैसर पर एक किताब ।
अन्य: वसुधा, हंस, इंडिया टुडे, सहारा समय, समकालीन तीसरी दुनिया, जनपथ, जनमत, समकालीन सृजन, देशज समकालीन, शुक्रवार, आउटलुक, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, जनसत्ता, दैनिक जागरण, कादम्बिनी, आजकल, समकालीन भारतीय
साहित्य, प्रथम प्रवक्ता आदि
पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक - सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन। http://hindiacom.blogspot.com/
[ कारवॉं KARVAAN ]
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