नारी सशक्त हो रही है .इंटर में लड़कियां आगे ,हाईस्कूल में लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा ,आसमान छूती लड़कियां ,झंडे गाडती लड़कियां जैसी अनेक युक्तियाँ ,उपाधियाँ रोज़ हमें सुनने को मिलती हैं .किन्तु क्या इन पर वास्तव में खुश हुआ जा सकता है ?क्या इसे सशक्तिकरण कहा जा सकता है ? नहीं .....................
''सच्चाई छिप नहीं सकती ,बनावट के उसूलों से , कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से .'' दुश्मन फिल्म का ये गाना एकाएक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के इस दावे '' ढाई साल से थी नोटबंदी की तैयारी '' पढ़ते ही ज़ुबान पर आ गया .शाह का यह बयां मोदी के द्वारा नोटबंदी की आड़ मे
अरुणाचल प्रदेश में सी.एम्.हाउस में तीन सी.एम्. की मौत के बाद वहां की सरकार भी भूत-प्रेत में विश्वास करने लगी और बंगले को पूजा पाठ के बाद गेस्ट हाउस में तब्दील करने की योजना पर काम करने में जुट गयी .इसे कहते हैं समस्या के सही निदान की न सोचकर इधर-उधर हाथ पैर मारना, हमें स्वयं विचार करना चाहिए कि