तन और मन की देहरी के बीच भावों के उफनते अथाह उद्वेगों के ज्वार सिर पटकते रहते है। देहरी पर खड़ा अपनी मनचाही इच्छाओं को पाने को आतुर चंचल मन, अपनी सहुलियत के हिसाब से तोड़कर देहरी की मर्यादा पर रखी हर ईंट बनाना चाहता है नयी देहरी भूल कर वर्जनाएँ भँवर में उलझ मादक गंध में बौराया अवश छूने को मरीचिका
मुख्यतः हम जनसाधारण शिक्षा व साक्षरता में अंतर करना नहीं जानते. किसीके शिक्षित होने या न होने का मापदंड उसके उपलब्ध किये हुए डिग्री से समझते हैं. जिसने जितनी ज़्यादा उच्च शिक्षा प्राप्त की हो वह उतना ही दूरदर्शी और सुलझे हुए विचारों का होगा, हम ऐसा समझते हैं.