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भाईचारा ( कहानी प्रथम क़िश्त)

24 मार्च 2022

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( भाईचारा  )  कहानी प्रथम क़िश्त 

कृष्नकान्त तहसील आफ़िस में तहसीलदार साहब की प्रतीक्षा में घंटों से खड़ा था । पर साहब आफ़िस से ऐसे कि गधे के सिर से सिंग । वहां के बड़े बाबू भी साहब के न रहने से अपनी गायब थे जैसे टेबल से उठकर कैन्टिन चले गए थे । 
कृष्नकान्त इसी तरह लंबे समय से लगातार दुर्ग तहसील आफ़िस का चक्कर लगा रहा था । लेकिन उसके केस की सुनवाई एक बार भी नहीं हुई । केवल तारीख़ पर तारीख़ मिलती जा रही थी । 
वास्तव में कृष्नकान्त का इस केस में उलझने की वजह उसका ही चचेरा भाई रमाकान्त ही था। विवाद की जड़ में दुर्ग शहर के गंजपारा स्थित एक बीस हज़ार वर्ग फ़ीट की ज़मीन थी । जिसका बाज़ार मूल्य आज की तारीख़ में लगभग 2 करोड़ रुपिए था । 
कृष्नकान्त और रमाकान्त दोनों चचेरे भाई हैं । दोनों की उम्र लगभग एक ही थी । दोनों का बचपन एक दूसरे के साथ खेलते कूदते हुए गुज़रा था । 2 वर्ष पूर्व धमधा में जब डेन्गू फ़ैला था, उसकी जद में दोनों के माता पिता आ गए थे और उन चारों की 10 दिनों के अंतराल में मृत्यु हो गई थी । आज की तारीख़ में उन दोनों का न कोई और भाई बहन था न ही कोई और नज़दीकी रिश्तेदार था । कुछ दिनों पूर्व तक रमाकान्त और कृष्नकान्त दिन भर साथ ही रहते थे । एक दूजे के बिना दिन गुज़ारने की वे सोच भी नहीं सकते थे । 
दोनों के हक में लगभग 10/ 10 एकड़ ज़मीनें थी । जो धमधा के पास  स्थित ग्राम धर्मपुरा नाम के छोटे से गांव में थी । वे दोनों धमधा में रहते थे और कोई काम नहीं करते थे । अपनी खेती की ज़मीनों को दोनों रेघ पर धर्मपुरा के ही एक किसान भागवत साहू को दे देते थे और उसके बाद वे गांव देखने भी नहीं जाते थे कि भागवत उनकी खेत पर खेती किस चीज़ का कर रहा है और कितने अच्छे से कर रहा है ।
कुछ दिनों पूर्व रमाकान्त को दुर्ग के तहसील दार आफ़िस से चिट्ठी प्राप्त हुई थी कि आपके दादा कमलकान्त जी के नाम से लगभग 20000 फ़ीट की एक जमीन  दुर्ग के गंजपारा में स्थित है । इस ज़मीन को जन सुविधा केन्द्र बनाने शासन अधिग्र्हित करना चाहती है । उस स्थान की ज़मीन की क़ीमत हज़ार रुपिए प्रति स्क्वे फ़ीट है । अत: उस ज़मीन की क़ीमत लगभग 2 करोड़ रुपिए होगी । आपकी स्वीकृति की ज़रूरत है । इस हेतु आप दुर्ग तहसील आफ़िस में उपस्थित होकर कुछ फ़ार्मिलिटिस कर लें । उसके बाद अधिग्रहण की प्रक्रिया शासन प्रारंभ कर पाएगी । और  इस संबंधित जो पैसा बनेगा शीघ्र अति शीघ्र आपने बैंक खाते में शासन ट्रान्सफ़र कर देगा ।
चिट्ठी पढकर रमाकान्त खुशी से पागल हो गया । उसे ऐसी ज़रा भी जानकारी नहीं थी कि उसके दादा के नाम से कोई शहरी ज़मीन दुर्ग में है । न ही उसके पास इस संबंधित कोई दस्तावेज ही थे । रमाकान्त ने तहसील आफ़िस से प्राप्त इस चिट्ठी को छिपाकर रख लिया । और अपने भाई कृष्नकान्त को भी इस बारे में कुछ नहीं बताया । 
10 दिनों बाद तय तारीख को रमाकान्त दुर्ग तहसील आफ़िस पहुंच गया । वहां गंजपार क्षेत्र के पटवारी जोहन ठाकुर से मिलकर तहसील आफ़िस से प्राप्त चिट्ठी दिखाई तो पटवारी ने रमाकान्त को वह फ़ाइल दिखाई । जो उसके दादा कमलकांत के ज़मीन संबंधित थी । जिसे शासन अधिग्रहित करने जा रही थी । उस फ़ाइल में रमाकान्त के पिता द्वारा उठाया गया फ़ौत पत्र भी था । जो दिखा रहा था कि वह ज़मीन उसके पिता के नाम से दर्ज़ हो चुका था । अचानक प्राप्त हुए इस प्रापर्टी से रमाकान्त की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । वह कई प्रकार के सपने बुनने लगा । वह सोचने लगा कि प्राप्त 2 करोड़ में से आधा पैसा को वह बैंक में फ़िक्स्ड डिपासिट कर देगा और आधा पैसा को वह विश्व भ्रमण में व अन्य कई प्रकार के शौक को पूरा करने में खर्च करेगा । कुछ दिनों में ही दुर्ग तहसीलदार की तरफ़ से विभिन्न दैनिक अखबारों में एक विज्ञापन छपा कि स्वर्गीय विजयकांत जी के नाम की ज़मीन उनके सुपुत्र रमाकान्त के नाम से सरकारी कागज़ात में दर्ज़ होने जा रही है । अगर उनके अलावा विजयकान्त जी के और कोई वारिसान हों तो पन्द्रह दिनों के अंदर अपना दावा प्रमाण के साथ प्र्स्तुत करें। इस तारीख़ के अंदर अगर हमें कोई आपत्ति नहीं प्राप्त होती है तो उस ज़मीन का मालिक रमाकान्त जी को कानूनी रूप से मान लिया जाएगा । 
उधर रमाकान्त ने अपने चचेरे भाई कृष्न्कान्त को यह बताया कि उसके रेघहा लेने वाले किसान को तहसील आफ़िस में कोई काम है अत: उसने मुझसे अपने साथ तहसील आफ़िस चलने का अनुरोध किया है । हो सकता है इस काम को पूर्ण करने 2/3 दिनों तक लगातार तहसील आफ़िस जाना पड़े और दिन भर तहसील आफ़िस में ही बिताना पड़े। अत: हम अभी कुछ दिनों तक रात को ही मिल पाएंगे । रात 8 बजे मैं तुम्हें अमृत बार में मिल ही जाऊंगा । रमाकान्त की बातों को कृष्नकान्त ने बिल्कुल ही सामान्य तरीके से लिया और ज्यादा खोदकर रमाकान्त से कुछ नहीं पूछा । 
इस बातचीत के अगले दिन कृष्नकान्त जब सुबह अग्रवाल होटल में नाश्ता करते करते अखबार पढ रहा था , तो उसने एक विज्ञापन देखा । इस विग्यापन में रमाकान्त के दादा की ज़मीन के बारे में लिखा गया था और लिखा गया था कि उपरोक्त ज़मीन को रमाकान्त के नाम से रजिस्ट्रड  किया जा रहा है । इस हेतु किसी शख़्स को आपत्ति है या अपना दावा करना चाहता है तो 15 दिनों के अंदर दुर्ग तहसील दार के पास लिखित में अपनी बात लिख कर दें । इस विज्ञापन को पढकर पहले तो कृष्नकान्त बहुत खुश हुआ कि चलो रमाकान्त घर बैठे एक कीमती ज़मीन का मालिक बनने जा रहा है । लेकिन बाद में जब उसका ध्यान गया तो उसे लगा कि ज़रूर कुछ तो गड़बड़ है । उसे लगा कि जब ज़मीन रमाकान्त के दादा के नाम से है यानी खुद कृष्नकान्त के दादा के नाम से है तो वह कैसे सिर्फ़ रमाकान्त के स्वर्गीय पिता विजयकान्त के नाम से चढ सकती है । जबकि मेरे पिता संजय कान्त भी उस प्रापर्टी के उतने ही हक़दार थे । यह बात कृष्नकान्त को गैर वाजिब लगी। आखिर कैसे कमलकान्त की प्रापर्टी सिर्फ़ एक पुत्र के हिस्से में जा सकती है और दूसरे पुत्र को एक धेला भी न प्राप्त हो ।
कृष्नकान्त ने अगले दिन ही धमधा के जाने माने वक़ील कलीराम यादव जी से संपर्क करके अपनी समस्या उनके सामने रखी। सारी बातें सुनने के बाद वक़ील साहब ने कहा कि ऐसा लगता है कि कुछ तो इसमें घाल मेल लग रहा है । इसमें तुम्हारे पिताजी का भी उतना ही हक बनता था । जितना कि रमाकान्त जी के पिताजी का । फिर भी सारी बातें आगे सारे कागजात देखने के बाद साफ़ होंगी । हो सकता है कि रमाकान्त या उनके पिताजी ने पैसों का खेल खेलकर चीज़ों को अपने हक में लिखवा लिया है । मैं तुम्हारा केस लड़ूंगा और तुम्हारा अधिकार दिलवा के रखूंगा । सबसे पहले तो कल ही मैं तुम्हारी तरफ़ से दावा आपत्ति पेश करता हूं । फिर आगे की रणनीति बनाएंगे । अगले दिन ही यादव जी ने दावा आपत्ति दुर्ग तहसीलदार के आफ़िस में प्रस्तुत कर दिया । एक महीने बाद की सुनवाई की तारीख निर्धारित हुई । 
दो दिनों बाद जब कृष्नकान्त और रमाकान्त का आमना सामना हुआ तो कृष्नकान्त ने रमाकान्त को लगभग धमकाते हुए पूछा कि जब वह ज़मीन दादा के नाम की थी तो सिर्फ़ तुम्हें ही कैसे मिल सकती है । उस ज़मीन पर मेरा भी तुम्हारे बराबर अधिकार है । जवाब में रमाकान्त ने कहा कि मैं क्या जानूं जाओ तहसील आफ़िस में पता लगाओ कि ऐसा क्यूं ? 
कृष्नकान्त –गद्दार , धोखेबाज़ , करोड़ों रुपियों की ज़मीन को बिना डकारे हड़प जाना चाहते हो । मैं ऐसा होने नहीं दूंगा । 
रमाकान्त –तुम जबरन मुझपर दोषारोपण कर रहे हो । इसमें मेरी कोई गलती नहीं है । 
इसके बाद उन दोनों के बीच हाथा पाई होने लगी । जिसे आस पास के लोगों ने  बड़ी मुश्क़िल  छुड़ाया । 
इसके बाद कृष्नकान्त ने दोनों घर के बीच एक दीवार उठवा दिया।

( क्रमशः)
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भाईचारा कहानी
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कृष्णकांत और रमाकांत चचेरे भाई थे उनके बीच प्रगाढ दोस्ती थी । वे लगभग 24 घंटे साथ बिताते थे।धमधा ग्राम के वे निवासी थे और उनकी खेती की ज़मीन वहां से 5किमी दूर ग्राम धर्मपुरा में थी। वे दौनों अपने खेत को रेघ में दे देते थे और दिन भर दौनों धमधा मेँ आवारा गर्दी करते थे। पीते खाते थे। उनके बीच दुर्ग स्थित उनके दादा के नाम की ज़मीन के कारण ऐसा विवाद हुआ कि वीक दूजे को देखना भी पसंद नहीं करते थे । आगे चलकर यह विवाद सुलझ जाता है वह कैसे सुलझा यह एक प्रश्न है।

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