( भाईचारा ) कहानी अंतिम क़िश्त
( अब तक ,-- कृष्णकांत और रमाकांत के बीच अब दुशमनी की दीवार खड़ी हो गई थी। वजह थी एक ज़मीन का टुकडा जो उनके दादा के बाद विजय्कांत के नाम से होतेहुए रमाकांत के हक में आ रही थी)
दोनों भाईयों के बीच झगड़ा बढ़ते गया कृष्ण कान्त वक़्त बेवक़्त बिना किसी का नाम लिए अपने घर से गाली बकने लगा । ऐसा लगता था कि मानो वह रमाकान्त को ही गाली दे रहा हो ।
अब तो रमाकान्त और कृष्नकान्त एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे । रस्ते में कभी धोखे से टकरा जाते थे तो नाक भौं सिकोड़कर खामोशी से निकल जाते थे ।
अब कृष्नकान्त धमधा के बस स्टैन्ड स्थित होटल जाने की जगह हटरी बाज़ार स्थित बार में बैठने लगा्। जबकि रमाकान्त का रूटीन लगभग वैसे ही था । अब तो धमधा के लोग भी बात करने लगे थे कि इतनी गहरी दोस्ती और इतनी नज़दीकी रिश्तेदारी आखिर किस बात पर टूट गई । लेकिन उन दोनों से पूछने की हिम्मत किसी के पास नहीं थी ।
यादव वक़ील ने रमाकान्त और कृष्नकान्त की चार पीढियों का वंश व्रिक्ष तैयार करके उसे शपथ पत्र सहित और सारे कागजात को नोटेराइस्ड कराके तहसील आफ़िस में कानूनी प्रक्रिया के तहत ज़मा करवा दिया । जब तहसीलदार ने सुनवाई प्रारंभ किया तो यादव वक़ील ने उन्हें अपने तर्क सहित समझाने की कोशिश किया कि रमाकान्त और मेरा क्लाइन्ट कृष्नकान्त एक ही कुल के वंशज हैं । दोनों के पिता चूंकि सगे भाई थे । अत: रमाकान्त और क्रिष्नकान्त के दादा की प्रापर्टी के दोनों के पिता बराबरी के हकदार हैं । और उसके बाद अपने अपने पिता के नाम की प्रापर्टी रमाकान्त और कृष्नकान्त को कानूनी रूप से प्राप्त होगी ही । अत: मेरे पक्षकार को न्याय दिया जाये और उनके दादा की ज़मीन पर उन्हें भी बराबर का हिस्सा दिया जाये । पर तहसीलदार की कोर्ट ने यादव वक़ील के तर्क को इस तर्क से खारिज़ कर दिया कि चूंकि उपरोक्त ज़मीन आज की तारीख में रमाकान्त के पिता विजयकान्त के ही नाम से है अत: इस ज़मीन का हकदार रमाकान्त ही होंगे ।
इस फ़ैसले के बाद जब रमाकान्त कोर्ट से बाहर आया तो कृष्नकान्त ने उस पर हमला कर दिया । जवाब में रमाकान्त ने भी कृष्नकान्त पर चार घूंसे जड़ दिया । जिससे दोनों को गहरी चोट आई । फिर दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ़ थाने में रिपोर्ट करवा दिया । जिसके कारण पोलिस ने उन दोनों पर उपयुक्त धाराएं लगाकर उन पर कानूनी कर्यवाही करने की प्र्क्रिया प्रारंभ कर दी । धमधा आकर रमाकान्त और कृष्नकान्त के बीच फिर थोड़ी हाथा पाई हुई । उसके बाद वे दोनों अपने अपने घर चले गए।
घर जाकर रमाकान्त सोचने लगा कि वास्तव में दादा की प्रापर्टी में कृष्नकान्त का भी हक बनता है । फिर क्यूं सरकारी कागजात पे मेरा ही नाम है ? फिर उसे लगा कि मैंने तो कोई ग़लत काम नहीं किया है अत: मैं क्यूं उसके ताने सुनूं और उससे डरूं ?
कुछ दिनों के बाद यादव वक़ील ने इस केस को एस डी एम के न्यायालय में दायर कर दिया । पर वहां से भी फ़ैसला रमाकान्त के ही हक में ही आया । इसके बाद यह केस सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा । इन प्रक्रियाओं को होने में 10 वर्ष बीत गए। अब तो सुप्रीम कोर्ट का जो भी फ़ैसला आएगा वह सबके लिए मान्य होगा ही । लेकिन केस लड़ते लड़ते रमाकान्त और कृष्नकान्त को इतना ख़र्च करना परा कि दोनों की पांच पांच एकड़ ज़मीनें बिक गईं । अब तो दोनों मानसिक रुप से टूटने लगे थे । हालाकि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के पूर्व सारे कोर्ट का फ़ैस्ला रमाकान्त के ही हक में आया , लेकिन केस किसी न किसी कोर्ट में होने के कारण वह दुर्ग की ज़मीन को बेच नहीं पाया । अत: पैसों की तंगी उसे भी महसूस होने लगी थी । इस बीच एक दिन रमाकान्त के घर में डकैती पड़ गई । इस डकैती में उसके घर से डकैत लगभग 5 लाख का सामान अपने साथ ले गए। रमाकान्त ने पोलिस के सामने डकैती का शक कृष्नकान्त पर किया । अत: पोलिस कृष्नकान्त को बार बार तंग करने लगी । अपने बचाव में कृष्नकान्त को इतना दौड़ धूप करनी पड़ी कि उसका लगभग 1 लाख रुपिए और खर्च हो गया।
सुप्रीम कोर्ट का अभी फ़ैसला आया भी नहीं था कि एक अजीब परिस्थिति निर्मित हो गई । दुर्ग के तहसील आफ़िस में स्टेट बैंक गंजपारा शाखा ने अपना दावा प्र्स्तुत किया कि रमाकान्त जी के दादा स्वर्गीय कमलकांत जी ने आज से 40 वर्ष पूर्व 2 लाख रुपिए लोन लिया था और उसकी एवज में दुर्ग गंजपारा स्थित अपनी ज़मीन को माडगेज किया था । 2 किश्त पटाने के बाद उन्होंने किस्त पटाना बंद कर दिया । बैंक ने उन्हें इस हेतु कई रिमाइन्डर भेजे पर उधर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया । कुछ समय बाद बैंक अपने पैसों की रिकवरी का प्रयास करता रहा । पर ये हो न पाया । बाद में हमें पता लगा कि उनकी मृत्यु हो गई । हमारी तरफ़ से भी रिकवरी की प्रक्रिया न जाने किस कारण से रुक गई । अत: केस पेन्डिंग हो गई। धीरे धीरे 20 वर्ष गुज़र गए। और हाल ही में जब कमलकांत संबंधित ज़मीन का विग्यापन तहसील आफ़िस दुर्ग से निकला तब हमारे मैनेजमेंट ने इस हेतु संग्यान लिया । आज की तारीख में ब्याज सहित स्वर्गीय कमलकांत जी या उनके वारिसान से रिकवरी एमाउन्ट 2 करोड़ रुपिए हो चुका है । अत: हम आपकी कोर्ट से यह आदेश प्राप्त करने आए हैं कि हमें ये अधिकार दें कि उक्त ज़मीन को नीलाम करके हमारे बैंक से लिए गए लोन की रिकवरी कर सकें । तहसील कोर्ट ने बैंक के कागज़ात का सूक्ष्म अवलोकन करके कुछ दिनों में ही बैंक के हित में अपना निर्णय दे दिया । 6 महीने के अंदर ज़मीन को नीलाम कर दिया गया और उससे प्राप्त सारा पैसा बैंक की रिकवरी के रुप में बैंक के पास चला गया । रमाकान्त जो कि कमलकांत जी का कानूनी वारिसान था । उसे एक भी पैसा नहीं मिला। जब यह बात सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो सुप्रीम कोर्ट ने रमाकान्त विरुद्ध क्रिष्नकान्त वाले केस को बंद करने का आदेश दे दिया ।
दो महीने बाद रमाकान्त और क्रिष्नकान्त के बीच फिर प्रगाढ दोस्ती हो गई । वे दोनों फिर धमधा बस स्टैन्ड स्थित स्पीन बार में एक साथ बैठ कर जाम टकराने लगे । उनके बीच भाई चारा फिर स्थापित हो चुका है जैसे 10 वर्ष पूर्व उनके बीच था ।
आज फिर धमधा के लोग रमाकान्त और कृष्नकान्त की दोस्ती और भाईचारे की मिसाल देने लगे हैं । दोनों की ज़िन्दगी फिर उसी तरह से चल रही है जैसे दस वर्ष पूर्व थी । इन दस वर्षों में दोनों की 5/5 एकड़ ज़मीनें बिक चुकी हैं और दोनों के बैंक बैलेन्स न्यून्तम स्थिति में पहुंच चुके हैं । फिर भी उनके माथे पर कोई शिकन नहीं दिखता। उनके चेहरों पर बिछड़ कर मिलने की ख़ुशी झ्लकने लगी हैं । ज्यादा पैसों के बारे में वे न ज्यादा सोचते हैं न ही उनकी ख़्वाहिश बची है कि बहुत सारा पैसा उन्हें हासिल हो जाए। उनकी बस एक ही ख़्वाहिश है कि जब तक ज़िन्दगी है तब तक उनके इस रुटीन में कोई फ़र्क न आए।
समय बीतता गया । साल भर बाद दोनों घर में खाना खाकर आराम कर रहे थे कि एक पोस्ट्मेन एक लिफ़ाफ़ा लेकर आया और उस लिफ़ाफ़े को कृष्नकान्त को सौंपा , जिसे एसडीओ आफ़िस दुर्ग से भेजा गया था । उस लिफ़ाफ़े को पाढकर जब उसके अंदर के कागज को कृष्नकान्त ने पढा तो उसके चेहरे पर ख़ुशीके भाव उभरे फिर उसकी आंखें आंसुओं से भीग गईं । उस चिट्ठी पर लिखा था कि बोरसी में आपके दादा कमलकान्त जी के नाम से दो एकड़ ज़मीन है । जिसका वारिसान आपको बनाया गया है । उस ज़मीन की वर्तमान क़ीमत लगभग 5 करोड़ रुपिए है। जिसे सरकार स्ड़क बनाने के लिए अधिग्रहित करने जा रही है । कृपिया दुर्ग एस्डीओ आफ़िस में आकर सारी फ़ार्मिलिटिस करके चेक प्राप्त कर लें ।
जब कृष्नकान्त ने इस चिट्ठी को जब रमाकान्त को दिखाया तो रमाकान्त भी बेहद ख़ुश होकर पूछा कि कब दुर्ग जा रहे हो ? जवाब में कृष्नकान्त ने कहा दुर्ग जाए मेरे दुश्मन । इसके साथ ही उसने जेब से लाइटर निकालकर उस लेटर को जला दिया । और फिर रमाकान्त से कहा कि चलो भाई आज तो शाम से ही गम गलत करने की इच्छा हो रही है । चलो बस स्टैन्ड स्थित“ स्पिन बार “ में कुछ पैसा लुटाकर आएं । आज का सारा खर्च मेरी ज़ेब से जाएगा।
समाप्त