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ठगी का बाजार सजा

29 नवम्बर 2021

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यहाँ ठगी का है बाजार सजा, सब मस्त हुऐ हैं ठगने में।

सब के रस्ते हैं अलग-अलग, पर मस्त हैं सब ही ठगने में।।


चोर भी ठग, न्यायाधीश भी ठग, संत्री भी ठग, मंत्री भी ठग।

जनता भी ठग, राजा भी ठग, है खुशी सभी को ठगने में।।


ये कला हो गई लोकप्रिये, अब विद्यालय खुलने चाहिए।

है कारोबार का ये बङा स्रोत, सब लगे हुऐ हैं ठगने में।।


बाहर से शकल दीखै भोली, भीतर में गंदगी भरी पङी।

चोला भी संत का पहर लिया, पर आनंद है जग को ठगने में।।


बेटा ठगता माँ-बापू को, माँ-बाप भी पीछे नहीं हैं अब।

जिसका भी जब लग जाये दाव, सब मस्त हैं रहते ठगने में।।


नौकर भी ठग, मालिक भी, मंदिर में ठग विद्या देखी।

कोई जगहं नहीं ऐसी बाकी, जहाँ लोग मस्त ना हों ठगने में।।


जिसने ये कला नहीं सीखी, वो भूखे मरते देखे हैं।

दर दर की ठोकर खाते है, जो व्यस्त नहीं है ठगने में।।


सीता का तो अनुभव है बुरा, मै माफी सबसे चाता हूँ।

यहाँ धर्मगुरु भी लगे हुऐ, भोले लोगों को ठगने में।।


।। सीता राम ।।

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