प्रण
क्यों रोक रहा है पथ मेरा बढ़ने दे मत अवरोध बढ़ा।ठानी है जिसने बढ़ने की फिर कौन उसे है रोक सका ।सब नतमस्तक होजाते हैं वो जाता है मदमस्त जहां।अपने मे खोया रहता है जग मे ना कुछ भी ढूंढ रहा।तू क्या सोचे है रोक सकेगा क्या उसका पथ तू बड़के ।नादान समझना मत उसको पाषाण चीर कड़ जायेगा ।तू होकर तम ये सोच रहा उदय प्