कुछ लोगो की राजनीती ने हमको है ये बतलाया।
बनते कैसे शेर से गीदड़ हमको है ये सिखलाया।
एक गाल पर मारे कोई दूजा भी उसको देदो।
जिस्म भला क्या चीज यहाँ प्राणों को भी उसको देदो ।
कितना भीरु बनाया हमको अहिंसा परमोधर्म ने।
भुला दिया कर्मन्यवाधिकारास्ते को उस धर्म ने।
जहाँ खेलते थे बच्चे भी सिंह शावक के साथ में।
वहीँ के लोगो को अब देखो डर जाते है रात मे।
राम कृष्ण को भुला दिया है सीता सावित्री याद नहीं ।
राणा प्रताप भी चले गए लष्मी बाई भी यहाँ नहीं।
पथ भ्रष्ट बना कर छोड़ा है भारत की संतान को।
नर भी नहीं बना पाये ये भारत के इंसान को।