एक दिन मै घर से गया बाजार कुछ काम से नहीं करने विहार।
चकित हो गया देख के अपनी बहिनों का स्रंगार।
श्रृंगार देख आचार देख और देख व्यवहार।
वहाँ देखता हूँ।
सैट हो रही आई ब्रो थी बोब्ड़ हो रहे बाल ओठों पर सज रही लिपस्टिक सूख रहे थे गाल ।
नेल पार दो इंच कर चुके कद था साढे चार उस पर फिट कुरता सलवार ।
आगे बढ़ता मैं सोच रहा था इस देश का भविष्य तभी नजर आये मुझको दो ग्रैजुएट मनुष्य।
फैशन के इस दौर मे भूमिका उनने खूब निभाई फैशन के इस भूत ने उनसे उनकी मूंछ मुडवाई ।
टाँगे जैसे बांस हो रही उस पर टाइट जीन्स ।
मुंह में गोल्डमोहर और हाथो मे थी विल्स।
पैरों में थे जूते जिनपर लिखी हुई वुडलैंड ।
मन मे सोचा मैंने होगया भारतीय संस्कृति का एन्ड देख के फैशन ट्रेंड।