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“गज़ल” डालियाँ थी जल रही खग बे सहारा कर गई॥

hindi articles, stories and books related to “gazal” daliyan thi jal rahi khag be sahara kar gai॥


“गज़ल”उस हवा से क्या कहूँ जो छल दुबारा कर गई रुक जला डाले महल औ दर किनारा कर गई रोशनी से वो नहाकर जब चली अपनी डगर देख लेती गर कभी उजड़े हुये इस चमन को तक न पाती रूह नजारा जो खरारा कर गई॥ उस पहर को क्या हुआ क्या पूछ पाती नजर सेहकबका कर पलट जाती छत उघारा कर गई॥ आज भी जो गंध ह

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