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“गज़ल-गीतिका ” जा रहे हो किधर दर्द सारे लिए

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छंद ‘’वाचिक स्रिग्वणी’’ मापनी- २१२ २१२ २१२ २१२, पदांत- लिएसमांत- आरे..... “गज़ल, छोड़ जाओ दवा है हमारे लिए सह न पाती सहुलियत इस मर्ज को खिल सकी क्या शमा भग्न तारे लिए॥बात इतनी कहूँ लौट जाओ सनम विष न घोलो जलज नयन खारे लिए॥टूटकर फिर न जुड़ती कड़ी साख सेरख उम्मीदें हार दामन सिता

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