छंद ‘’वाचिक स्रिग्वणी’’ मापनी- २१२ २१२ २१२ २१२, पदांत- लिए
समांत- आरे.....
“गज़ल,
छोड़ जाओ दवा है हमारे लिए
सह न पाती सहुलियत इस मर्ज को
खिल सकी क्या शमा भग्न तारे लिए॥
बात इतनी कहूँ लौट जाओ सनम
विष न घोलो जलज नयन खारे लिए॥
टूटकर फिर न जुड़ती कड़ी साख से
रख उम्मीदें हार दामन सितारे लिए॥
प्रश्न लाकर खड़ा जश्न तुमने किया
तो जवाबी ज़ख़म क्यों किनारे लिए॥
हल कभी क्या निकलता समर द्वंद का
बे-वजह की खफ़ा फक्र सारे लिए॥
चाल गौतम चला तो नज़र आ गया
हाथ पग क्यों झटकते सहारे लिए॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी