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“गीतिका” अधर अधर को चखा रहें है

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“गीतिका”कहाँ किसी से कहा कहीं है नहीं किसी की जुबा सही है अधर अधर को चखा रहें है न दूध प्याली जहाँ दही है॥मधुर अगन पर पका रहे हैं जमी कढ़ीं को हिला रही है॥उबल रही जो लपट तपन ले अगन लगाना कहाँ सही है।। विरह जिगर पर सहन करे जो सहज समझ लो चिलम वही है॥ धुँआ उड़ा कर हटा रहे क्यो

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