जल ही जीवन है।जल बचे तो जग बचे।जल जरूरी है जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी।जल बचेगा तब ही जीवन होगा ।बिन जल जीवन कैसा होगा,ये सोचें और अपनों के और जो है और जो ऑऐगे उनके लिए जल संरक्षण करें ।जरा सोचे जिस भौतिक वस्तु का हम संरक्षण और उपलब्धता कर रहे हैं अपनों के लिए (जो हैं या आने वाले है ) जिससे की जीवन सुगम, सरल,सहज हो। संपूर्ण सुख सुविधा से युक्त हो।और जल ही न रहे।जल की उपलब्धता बहुत कम % मे बची है।जल और अन्न की उपलब्धता और संरक्षण के बारे में सोचना और करना जरूरी ही नहीं वरण सब कार्यों में सर्वप्रथम प्रथम सदकार्य है ।जल बढ़े कैसे, जल का संरक्षण कैसे हो इस पर विचार नहीं कार्य हो।ये हम सभी का प्रथम कर्म है।अपने लिए न सही अपनों के लिए ।सभी जीव आत्मा परमात्मा के ही रुप हैं ।और धरती पर जीव आत्मा के जीवन के लिए जल जरुरी है।क्योंकि जल है तो जीवन है ।सभी जीव आत्मा परमात्मा के ही अंग हैं ।इसलिए अपने लिए नहीं परमात्मा के लिए ही सही।जल का संरक्षण करें ।