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सुखमंगल सिंह

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भक्ति - नारदश्री कृष्ण कहीं ना चले गये,भक्ति करने पर वे आते हैं।कौरवों के अत्याचारों से क्रुद्ध,द्रोपदी की रक्षा करते हैं।अनाथ देख देव देवियों को,गोपसुंदरियों को सनाथ किए हैं।मुनि नारद - भक्ती को समझाते,चिंतातुर भक्ति को यह बतलाते ।तुम्हें जो हैं वह प्यारे लगते,नीच भी उन्हें दुलारे लगते।सतयुग त्रेता औ द्वापर आगम,ज्ञान औ वैराग मुनि के आश्रम।इस कलियुग में उपवास भक्ति,केवल मोक्ष का स्वागत साधन।परमानंद ज्ञान स्वरूप जी,सत्य रूप में तुम्हें रचा था। सेवा की तुमने अपनी शर्तें रखी,उत्तर! मेरे भक्त का पोषण करो ! प्रभु - आज्ञा तुमने स्वीकारी,तुम्हें मुक्ति - दासी रूप दिखाया।प्रभु की कृपा दृष्टि में प्यारी,ज्ञान वैराग्य पुत्र मिले न्यारे।फिर भी वैकुंठ धाम में पोषण,भक्तों का करती रहती हो!भू लोक में पुष्टि के निमित्त,छाया रूप धारण करती हो!- सुखमंगल सिंह, अवध निवासी 

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