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पहला दिन

18 नवम्बर 2019

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स्कूल का पहला दिन, आसान नही होता हमारे लिए की जीवन में कोई बदलाव जल्दी से किया जाए और वो भी तब जब हम दुनिया देखना, समझना और सभी के साथ चलना सीख रहे हो। दरअसल पिछला स्कूल आठवीं कक्षा तक ही था तो आगे की पढ़ाई के लिए नए स्कूल में जाना ही था, और सबसे पास और अच्छा स्कूल जो था वही कुछ दूसरे दोस्तो की तरह मैंने भी दाखिला ले लिया। पहले दिन जब स्कूल में गए तो पुराने स्कूल के कुछ दोस्त तो थे लेकिन ऐसा लगा कि वो दोस्ती वही खत्म हो गयी और यहा नए दोस्त बनाने पड़ेंगे। मुश्किले कुछ और थी और जो हो रहा था वो समझ नही आ रहा था। नया स्कूल था सभी के लिए तो लगभग सभी चेहरे नए थे, उनमें एक चेहरा उसका भी था, उसकी हाइट दूसरी लड़कियों सेे कुछ ज्यादा ही थी तो पहले तो लगा कि वो दसवीं कक्षा की होगी पर बाद में पता चला कि वो हमारी नवीं कक्षा के ही दूसरे विभाग में थी। कुछ था उसमें की मेरा ध्यान बार-बार वही जा रहा था पर जैसे ही सुबह की प्रार्थना खत्म हुई वो नजरो से ओझल हो गयी। जितने भी नए विद्यार्थी स्कूल में आये थे, उन सभी को नवीं कक्षा का एक नया विभाग बना कर बिठाया गया। सभी किसी न किसी दूसरे स्कूल से आये थे तो थोड़ा सुकून मिला कि लगभग सभी अनजान है और फिर दोस्ती करने में भी आसानी हुई सभी से, पर हर समय एक-सा नही रहता। और कुछ दिनों के बाद एक सूचना आयी कि स्कूल में इस साल ज्यादा दाखिले होने की वजह से कक्षा नौ के हमारे विभाग में से कुछ को बाकी के दो विभागों में भेजा जाएगा। सब सुन्न रह गए कि बड़ी मुश्किल से तो यहाँ सेट हुए है अब फिर से सब शुरू होगा, अब परेशानी ये थी कि किस किसको भेजा जाएगा। और कुछ सोच पाते उससे पहले ही पता चला कि मेरा भी नाम था। हम सभी मे से कुछ को दूसरे दो अलग-अलग विभागों में भेज दिया गया। जिस विभाग में मुझे भेज गया वहा सभी विद्यार्थी पहले से ही एक दूसरे को जानते थे क्योंकि सब पुरानी कक्षा में भी साथ थे तो उनमें पहले से ही जान-पहचान और दोस्ती थी और हम जो वहा नए थे, हमे जल्दी ही समझ आ गया कि अब और ज्यादा कोशिश करनी पड़ेगी अपने पैर जमाने में। पर पिछले स्कूल की शिक्षा यहा काम आयी और बहुत जल्दी सब हम जानने और मानने लगे गए। इन सभी के बीच रोजाना मेरी आँखें उसे तलाशती थी पर समझ नही आता कि कहा ढूंढू। किसी से पूछना भी आसान नही था। बहुत दिनों के बाद एक दिन बालसभा में उससे सामना हुआ और कुछ खेल की जानकारी के बारे में उसने मुझे झाड़ दिया। हमारे पुराने स्कूल में खेल की ज्यादा कुछ सुविधाएं नही थी तो मुझे ज्यादा पता नही था और बिना पक्के विश्वास के मैं कुछ बोलना नही चाहता था, तो उस वक्त तो चुप रहा और समझ आ गया कि इसको तो एक दिन सबक जरूर सिखाऊंगा। और बहुत जल्दी ही मौका भी मिला। दो महीने के बाद कैम्प लगाया गया स्कूल में और कुछ अध्यापको ने अपनी-अपनी कक्षा में एक मीटिंग की जिससे कि उनकी क्लास का प्रदर्शन सबसे अच्छा हो। नवीं कक्षा के तीनों विभागों को एक साथ मिलकर कैम्प का आयोजन करना था तो हम सभी को साथ मे बिठाया गया और आज वो भी थी वहां। जब हमारी (जो दूसरे स्कूल से आये थे) तैयारियों की बारे में हमने सभी को बताया तो सब देख कर चौक गए, किसी को भी कुछ समझ नही आ रहा था, और सब पूछने लगे कि तुम्हें इन सभी चीजों के बारे में इतना कैसे पता। दरअसल हमारे पुराने स्कूल में ज्यादातर ऐसे काम हमे ही दिए जाते थे तो हमे इन सभी चीजों का अच्छा खासा अनुभव था। अब सभी तरफ हमारी वाही-वाही फैलने लगी। इसी बीच मैंने ध्यान दिया कि उसे ये सब अच्छा नही लग रहा था कि लगभग हर काम की जिम्मेदारी मुझे या हमारे ग्रुप को दी गयी थी। चूंकि अब हमारे लिए क्लास नई नही रही और सभी से चाहे वो स्टूडेंट हो या टीचर सभी से हमारी दोस्ती अच्छी हो गई थी तो हमारे लिए सारी चीजे आसान थी। हमने बचपन घर पर दौड़-भाग वाले काम बहुत किये थे तो कैम्प वाले दिन यू समझ लो कि बस हम लोग ही छाये रहे, यहा तक कि हमारा प्रदर्शन बाहरवीं कक्षा से भी अच्छा रहा। मैंने पूरा दिन ध्यान दिया कि उस लड़की को जो भी काम दिया गया, या तो उसने टाल दिया या किसी और से करवाया क्योंकि सभी काम जो उसको दिए जा रहे थे उसके लिए उसे मेरे या मेरे ग्रुप के पास आना पड़ता और ये शायद उसको गवारा नही होता। कुल-मिलाकर उसका ध्यान दिन भर मुझ पर था और मेरा उस पर, पर मैंने ऐसा दिखाया कि जैसे मुझे कुछ पता ही नही। जब सब कुछ खत्म हो गया तो हमारे ग्रुप को प्रन्सिपल ने भी शाबाशी दी और दूसरे कुछ टीचर्स ने सभी लड़कियों को और खासकर उसके ग्रुप को भी हमसे थोड़ी प्रेरणा लेने को कहा। उस वक़्त वो जैसे मुझे देख रही थी ऐसा लग रहा था कि अगर उसको अभी बन्दूक दे दी जाए तो मेरा तो राम नाम सत्य ही हो जायेगा और शायद साथ मे मेरे दोस्तों का भी पर हमारे ग्रुप के सभी लोग तो मस्ती के मूड में थे।

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