जब से छुप कर कहीं तुम को देखा है.
आंखों ने हम को परेशान कर रखा है,
कोई और देखना अब इसे गवारा नहीं,
कईं बार इसे चाँद दिखा कर परखा है.
हमारे काबू में नहीं, तुम्हारी हो चुकी हैं,
काला जादू सा तुमने कुछ कर रखा है.
झपकना भूल गयी है शायद तब से ही,
पलक तक को भी नाकाम कर रखा है.
हद तो तब हुई जब नींद आ गई यारो,
कह रही है अब ख्वाबों में क्या रखा है.