भारत की भाषाओं का ऐसा अपमान..... वो भी भारत में...! क्यों...? सोचो...!
15 अगस्त 2017
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एक भाषा हमारे राष्ट्र को कैसे अवनति की ओर धकेल रही है इसका नूतन दृश्य रामजन्मभूमि विवाद है। जिसे शीघ्र सुलझाने के लिए नियमित कार्यवाही का अनुरोध किया गया था उसे पहले ही दिन तीन माह के लिए आगे बडा दिया गया। मात्र इसलिए क्यों कि विषय से सम्बन्धित पुरालेख अंग्रेजी में नहीं थे वो सभी स्थानीय भाषाओं में थे। अब जब तक उनका अनुवाद नहीं हो जाता,कोई कार्यवाही नहीं होगी। एक तरफ तो इस विवाद से जुडे लोगों को न्याय के लिए और अधिक प्रतीक्षा करनी होगी वही दूसरी ओर अनुवाद, अनुवाद का काम विषय को प्रभावित करेगा। राष्ट्र का दुर्भाग्य देखो जो पुरालेख हैं उन पर विचार नहीं हो सकता उसके अनुवाद पर विचार होगा उसे प्रामाणिक माना जायेगा। उसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा। और मूल साक्ष्य महत्व हीन हो जायेंगे वो कूडे के ढेर में बदल जायेंगे। देखा... आपने .... यह है भारत की न्यायव्यवस्था...! जो अपनी ही भाषाओं में लिखी गई बात को प्रामाणिक नहीं मानती लेकिन उसी का अंग्रेजी अनुवाद उसके लिए प्रामाण हो सकता है। क्या ऐसा अपमान दुनिया में कहीं भी देखा है आपने अपनी भाषाओं का...? हम आज स्वतन्त्रता दिवस मना रहे हैं..! क्या ये हास्यास्पद नहीं है जहाँ कानून बना कर राष्ट्र का, राष्ट्र की भाषाओं का, राष्ट्र की सभ्यता का, राष्ट्र की संस्कृति का अपमान किया जा रहा है....? हम कब तक चुप रहेंगे...! कब तक...? कब तक हम अपनी रोजीरोटी के लिए...., अपने इस नासवान जीवन के लिए ..... राष्ट्र का अपमान होता देखते रहेंगे....? कब तक.....?
अजीत सिंहः
मूषक पता- @अजीतसिंहः
सही कहा आपने देश के सबसे निचली अदालत ने हिंदी को अपमान किया है तभी तो 3 मंथ के लिए राम लाला का मंदिर के ऊपर जो लेक्चर होने वाला था 3 महीना आगे धकेल दिया