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तुम नदी बनकर बहो तो...

6 जून 2017

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~~~ गीत ~~~ ~~~~ मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ ,तुम नदी बन कर बहो तो ! प्राण के उत्सर्ग का उत्सव मना लूँ , साथ चलने को कहो तो ! ~~~~ साथ चलने से मिलन के स्वप्न निरवंशी न होंगे । इस पुरातन देह के शत रूप अर्वाचीन होंगे । जो अभी तक खोजते फिरते रहे संसार में हम । क्या पता पाएँ किनारा वह इसी मझधार में हम । ~~~~ गर्त है क्या सिन्धु में डुबकी लगा लूँ , बाँह बाँहों में गहो तो ! मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ ,तुम नदी बनकर बहो तो ! ~~~~ सर्पदंशों की चुभन अंगार सी जलती रहे क्यों । हर खुशी के गर्भ में एक वेदना पलती रहे क्यों । सैकड़ों गतिरोध मिल पाषाण सी काया तराशें । सीप का मोती हँसे , हँसता रहे मेरी बला से । ~~~~ एक शालिग्राम सा आकार पा लूँ , रूप रचने को रहो तो ! मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ , तुम नदी बनकर बहो तो ! ~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ @ विश्वम्भर नाथ त्रिपाठी-कानपुर । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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वाह वाह बहुत ही सुन्दर

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तुम नदी बनकर बहो तो...

6 जून 2017
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~~~ गीत ~~~~~~~मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ ,तुम नदी बन कर बहो तो !प्राण के उत्सर्ग का उत्सव मना लूँ , साथ चलने को कहो तो !~~~~साथ चलने से मिलन के स्वप्न निरवंशी न होंगे ।इस पुरातन देह के शत रूप अर्वाचीन होंगे ।जो अभी तक खोजते फिरते रहे संसार में हम ।क्या पता पाएँ किनारा वह इसी मझधार में हम ।~~

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गीत

6 जून 2017
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मिल गयी मंजिल जमाना जल उठा पाँव के छाले नहीं देखे किसी ने ।हर खुशी अपने कुँआरे पेट में दर्द जो पाले नहीं देखे किसी ने ।।~~~~~वेदना अर्धांगिनी बनकर मेरी सेज पर यौवन लिये सोती रही ।इक अभागिन प्रेमिका सी कामना हाथ मंगल सूत्र ले रोती रही ।~~~~~रात दिन मजबूरियों की आँख सेछलकते प्याले नहीं देखे किसी ने

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