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गीत

6 जून 2017

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मिल गयी मंजिल जमाना जल उठा पाँव के छाले नहीं देखे किसी ने । हर खुशी अपने कुँआरे पेट में दर्द जो पाले नहीं देखे किसी ने ।। ~~~~~ वेदना अर्धांगिनी बनकर मेरी सेज पर यौवन लिये सोती रही । इक अभागिन प्रेमिका सी कामना हाथ मंगल सूत्र ले रोती रही । ~~~~~ रात दिन मजबूरियों की आँख से छलकते प्याले नहीं देखे किसी ने । ~~~~~ गूँजती शहनाइयों के बीच कितने स्वप्न अनब्याहे रहे सारी उमर । आज खुशियाँ भाँवरें घूमीं मेरी हो गयी बागी जमाने की नजर । ~~~~~ सैकड़ों सम्बन्ध गुजरे वक्त ने तोड़ जो डाले नहीं देखे किसी ने । ~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विश्वम्भर नाथ त्रिपाठी -कानपुर । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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आदरणीय त्रिपाठी जी ----- आपका भाव पूर्ण गीत मन को छू लेने वाला है -------------- शुभकामना सहित ------

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तुम नदी बनकर बहो तो...

6 जून 2017
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~~~ गीत ~~~~~~~मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ ,तुम नदी बन कर बहो तो !प्राण के उत्सर्ग का उत्सव मना लूँ , साथ चलने को कहो तो !~~~~साथ चलने से मिलन के स्वप्न निरवंशी न होंगे ।इस पुरातन देह के शत रूप अर्वाचीन होंगे ।जो अभी तक खोजते फिरते रहे संसार में हम ।क्या पता पाएँ किनारा वह इसी मझधार में हम ।~~

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गीत

6 जून 2017
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मिल गयी मंजिल जमाना जल उठा पाँव के छाले नहीं देखे किसी ने ।हर खुशी अपने कुँआरे पेट में दर्द जो पाले नहीं देखे किसी ने ।।~~~~~वेदना अर्धांगिनी बनकर मेरी सेज पर यौवन लिये सोती रही ।इक अभागिन प्रेमिका सी कामना हाथ मंगल सूत्र ले रोती रही ।~~~~~रात दिन मजबूरियों की आँख सेछलकते प्याले नहीं देखे किसी ने

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