तुम नदी बनकर बहो तो...
~~~ गीत ~~~~~~~मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ ,तुम नदी बन कर बहो तो !प्राण के उत्सर्ग का उत्सव मना लूँ , साथ चलने को कहो तो !~~~~साथ चलने से मिलन के स्वप्न निरवंशी न होंगे ।इस पुरातन देह के शत रूप अर्वाचीन होंगे ।जो अभी तक खोजते फिरते रहे संसार में हम ।क्या पता पाएँ किनारा वह इसी मझधार में हम ।~~