वसंत पंचमी, सरस्वती पूजा , श्री राम सीता विवाह : १ फरवरी (माघ शु.प. पंचमी) बुधवार
माघ शुक्ल पक्ष पंचमी से वसंतोत्सव प्रारंभ होते हैं, इसलिए इस तिथि को वसंत पंचमी कहते हैं ।
इस त्याैहार का उद्देश्य है इस दिन पर सृष्टि के नवचैतन्य व नवनिर्माण के कारण प्राप्त आनंद को प्रकट करना व खुशियां मनाना ।
वसंत पंचमी को मनाये जाने के कुछ विशेष धार्मिक कारण:
1 - वसंतोत्सव और पीला रंग
यह रंग हिन्दुओं का शुभ रंग है। बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद करते हैं। अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सज़ा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोग के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं। तब सभी लोग अपने दाएं हाथ की तीसरी उंगली में हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को माँ सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाते हैं, और जलार्पण करते हैं। धान व फलों को मूर्तियों पर बरसाया जाता है। गृहलक्ष्मी बेर, संगरी, लड्डू इत्यादि बांटती है। प्रायः बसंत पंचमी के दिन पूजा समारोह विधिवत नहीं होते हैं, क्योंकि लोग प्रायः घर से बाहर के कार्यों में व्यस्त रहते हैं। हाँ, मंदिर जाना व सगे-संबंधियों से भेंट कर आशीर्वाद लेना तो इस दिन आवश्यक ही है।
2 - इस दिन नई फसल की बालियां लाकर उन्हें घर के देवता को अर्पण कर नवान्न भोजन करते हैं ।
3 - सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी ।
इस तिथि पर सरस्वती देवी उत्पन्न हुर्इं, इसलिए उनकी पूजा करते हैं । इस दिन को लक्ष्मी का भी जन्मदिन माना जाता है । अर्थात इस तिथि को श्री पंचमी भी कहते हैं ।
सरस्वती पूजा : कलाप्रेमियों की प्रिय, हंसवाहिनी एवं ज्ञानस्वरूपिणी ज्ञानीजनों को विद्या का दान करती हैं एवं प्राप्त लक्ष्मी का उपयोग उचित ढंग से होने हेतु विवेक को जागृत रखती हैं । ऐसी श्री सरस्वतीदेवी का पूजन करें ।
4- श्री राम सीता जी का विवाह।
कुछ पौराणिक कथाओ और धर्म ग्रन्थो के अनुसार आज ही के दिन श्री राम जी और सीता जी का विवाह संपन्न हुआ था। किन्तु इस विषय में अधिकतर लोगो को कोई भी जानकारी नहीं है। पर यह एक सत्य है और हमे इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाना चाहिए।
5 - पौराणिक महत्त्व : कुछ कथाओ के अनुसार राम जी सीता जी को ढूंढते हुए दक्षिण दिशा की और बढ़े जिन स्थानों पर वह गए उनमे दंडकारण्य भी था। यही शबरी भीलनी भी रहती थी ये स्थान आज के गुजरात के डांग जिले में हैं। आज के ही दिन श्री राम जी को शबरी माता ने अपनी कुतिया में बेर खिलाये थे।
6 - ऐतिहासिक महत्व: वसंत पंचमी दिन हमे पृथ्वीराज चौहान की याद दिलाता है। आज के ही दिन उन्होंने शब्दभेदी बाण द्वारा मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतारा और उसके उपरांत अपने साथी कवि चंदबरदाई के साथ एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। यह घटना 1192 ई में वसंत पञ्चमी को हुई थी।
प्रचलित कहावतों के अनुसार मान्यता है की आज के दिन अपने बच्चों शिक्षा ग्रहण करने के लिए उनका विद्यालयो में नामकरण करवाया जाता था क्योंकि इस दिन सरस्वती माता की खासतौर पर पूजा की जाती है।
किन्तु आजकल वसंत पंचमी का त्यौहार सिमट कर सिर्फ पतंगबाजी करने तक ही सीमित रह गया है। लेकिन पतंगबाजी का कोई सीधा सम्बन्ध हमारी संस्कृति से नहीं है लेकिन ये रिवाज हजारों साल पहले चीन में शुरू हयेऔर फिर कोरिया और जापान के रस्ते होता हुआ भारत पहुंचा।
समय और ज्ञान के अभाव में हम अपनी धार्मिक मान्यताओं के अर्थ को ही भूलते जा रहे है।
हमें चाहिये की हम अपने बच्चों को वसंत पंचमी के त्यौहार की सही और अधिक से अधिक जानकारी दें ताकि वसंत पंचमी जैसा पवित्र त्यौहार सिर्फ एक छुट्टी का रूप लेकर पतंगबाजी करने तक ही न रहे।
इस दिन हमे अपने बच्चों और परिवार सहित माँ सरस्वती और श्री राम चंद्र और सीता जी की भी अवश्य पूजा करनी चाहिए।
इन सबके अतिरिक्त और बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाएं भी वसंत पंचमी से जुडी हुई है।
आशा करता हूँ की इस बार आप वसंत पंचमी को सही अर्थो में समझ कर उसका सम्मान करेंगे और सभी लोगो को भी बताएँगे ताकि इस त्यौहार की महानता को अच्छे,धार्मिक और वैज्ञानिक ढंग से समझा और समझाया जा सके।
आप सबका एक हितेषी मित्र
वंदे मातरम्
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