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रास्ते

3 जनवरी 2018

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मंज़िलें न थीं थीं बस राहें बाँहें फ़ैलाए । चलता रहा बेवजह या वजह के लिए। यूँ ही एक मोड़ पर ठिठके कदम। पीछे मुड़कर देखा कहीं मिले दो कदम। साथी छूटे थे या चले थे छोड़ एक आवाज़ पर आने वाले सौ आवाजों से भी दूर थे।

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