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खुद की मौत पर तन्हा था मैं, मांतम मनाने के लिये।केवल ओठ ही हिलते है, अब बस गुनगुनाने के लिये।।हालांकि मेरे हाथ से, गिर कर जो टूटा काँच सा,अरमान ही तो था मेरा, बस मुस्कुराने के लिये।।उस शाम की महफिल में ,बस दो चार ही तो लोग थे,मैं था , मेरे ग़म थे, दो आंसू बहाने के ल

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