लघुकथा- सखी रे, मोरा नैहर छूटा जाए फूल लोढ़ने की डलिया हर सुबह, बसंती के हाथों में उछल- ककूदकर अपने आप ही आ जाती है मानों उसके नित्य के दैनिक कर्म में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी बनकर समाहित हो गई है। उसकी दादी की पूजा में ताजे फूलों का भगवान के शर पर चढ़ना पूरे परिवार के लिए एक