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न रखती गिला मन न करनी गिरानी॥

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बह्र- १२२ १२२ १२२ १२२ काफ़िया-अनी रदीफ़ – आनी “गज़ल” बताओ सनम आप अपनी जुबानीसुनाओ धरूँ ध्यान कथनी कहानीपहल चित अभी जान पाई नहीं हूँखड़ी हूँ भरम भान अवनी विरानी॥कहीं भी कभी भी मिले हम नहीं हैं घिरी हूँ नयन नक्श सपनी सयानी॥ उड़े हैं अनेकों उमड़ घुमड़ बादल न करती किफायत सुनयनी जवा

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