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नववर्षनयासाल

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युग का जुआ कांधे देकर, बदल रहा ये साल... यादों के कितने ही लम्हे देकर, अनुभव के कितने ही किस्से कहकर, पल कितने ही अवसर के देकर, थोड़ी सी मेरी तरुणाई लेकर, कांधे जिम्मेदारी रखकर, बदल रहा ये साल... प्रगति के पथ प्रशस्त देकर, रोड़े-बाधाओं को कुछ समतल कर, काम अधूरे से बहुतेरे रखकर, निरंतर बढ़ने को कहकर

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