रंग- झलक कहाँ से लाऊँ बसंत रे किसे लगाऊँ गुलाल न होली होली रही न होलिका दहन धमाल न सम्मत में जोश है नाही मन में उल्लास अपने घर में बैठकर रंगफाग करे मलाल।। रंग बरसे भीजे चुनर वाली,......बिरज में होली खेलें नंदलाल......जब भी सुनाइ देता है मन फागुन बन रंग खेलने लगता है