फिर क्युँ परखते हो बार-बार तुम इस सत्य की सत्यता?सूर्य की मानिंद सतत जला है वो सत्य,किसी हिमशिला की मानिंद सतत गला है वो सत्य,आकाश की मानिंद सतत चुप रहा है वो सत्य!अबोले बोलों में सतत कुछ कह रहा है वो सत्य!फिर क्युँ परखते हो बार-बार तुम इस सत्य की सत्यता?गंगोत्री की धार सा सतत बहा है वो सत्य, गुलमोह