शिक्षा आज के आधुनिक युग में 'ज्ञान मात्र' ना रहकर, बाजार में बिकने वाली एक 'वस्तु मात्र' बनकर रह गई है। जिस प्रकार जब माता-पिता बाजार जाते हैं और बच्चे अलग-अलग खिलौने देखकर किसी महंगे खिलौने को लेने की इच्छा प्रकट करते हैं किंतु तब उनके माता-पिता अपनी पॉकेट टटोलने लगते हैं, क्योंकि उस खिलौने को खरीदने की क्षमता उनमें नहीं होती ।इसलिए वह अपने बालक से अलग-अलग बहाने बनाने लगते हैं। उसी प्रकार जब माता-पिता अपने बच्चे को स्कूल में दाखिल कराने का विचार करते हैं, तो कई बार किसी बड़े स्कूल में अपने बालक को दाखिल कराने की इच्छा होने के बावजूद भी वह उसे वहां पढ़ाने की क्षमता नहीं रखते क्योंकि उस स्कूल की फीस इतनी अधिक होती है जो शायद उनकी पूरे महीने की तनख्वाह से भी ज्यादा हो। ऐसे में बेचारे माता-पिता को अपने म मन की इच्छाओं को दबाकर अपनी क्षमता अनुसार शिक्षा और ज्ञान पाने के लिए भी समझौता करना पड़ जाता है ,जो कि बहुत ही दयनीय और दुखद बात है।
एक तरफ तो हम शिक्षा को सहज रूप से हर किसी को प्राप्त कराने की बातें करते हैं और दूसरी तरफ उसी शिक्षा को आम जनता की पहुंच से इतना दूर पहुंचा देते हैं, कि चाह कर भी कई योग्य बालक उससे वंचित रह जाते हैं।
आज शिक्षा का केवल आधुनिकरण ही नहीं, बल्कि बाजारीकरण भी हो रहा है। विभिन्न स्कूल अलग-अलग सुविधाओं के नाम पर पैसा बटोरने के कारखाने बन गए हैं। कोई स्कूल एयर कंडीशनर कक्षा के नाम पर , तो कोई डिजिटल बोर्ड के नाम पर, कोई पढ़ाने के लिए आधुनिक किताबों के नाम पर, तो कोई स्कूल में आधुनिक प्रयोगशाला के नाम पर केवल पैसे बटोरने में लगे हुए हैं।
यहां तक की कई स्कूल तो ऐसे हैं जो परिजनों को स्कूल से ही किताबें और यूनिफॉर्म लेने के लिए मजबूर करते हैं। हालांकि वह किताबें बाहर भी मिल सकती है, परंतु परिजनों पर दबाव डालकर उनसे स्कूल से ही सारी चीजें मनचाहे मूल्य पर खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। यही तक नहीं कई स्कूल तो दिवाली होली क्रिसमस जैसे त्योहारों को स्कूल में बनाने के लिए भी बच्चों पर अपने परिजनों से चीजें और पैसे मांगने का दबाव डालते हैं। और हद तो यह है अब तो बहुत से स्कूल पिकनिक के नाम पर बच्चों पर दबाव डालते हैं और उन्हें जबरन पैसे देने के लिए मजबूर करते हैं।आप ही बताइए क्या यह सही है?
एक मध्यम वर्गीय परिवार जो कि, इस बाजारीकरण के चलते बुरी तरीके से इस दबाव के नीचे दब जाता है, क्या उनके बच्चों को अच्छे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार केवल इसलिए नहीं होता क्योंकि आज शिक्षा का महत्व धन से कम हो गया है। केवल प्रारंभिक शिक्षा ही नहीं हूं अपितु 12वीं के बाद की शिक्षा तो कई परिजनों की पहुंच से बहुत बाहर हो जाती है। जिसकी वजह से उनके बच्चों को अपने सपनों और अपने भविष्य के साथ समझौता करना पड़ता है।
डॉक्टर और इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो सोचने से पहले भी आपकी पॉकेट में कम से कम चार से पांच लाख होने ही चाहिएं, क्योंकि इनके पेपर पास करना कोई आसान कार्य नहीं है। बड़े-बड़े संस्थान जो हमारे बच्चों का सपना पूरा करने में उनकी मदद करते हैं, इस ज्ञान के बदले मैं अच्छी खासी फीस लेते हैं। यह शिक्षा का बाजारीकरण नहीं है तो और क्या है?
पहले के समय में जहां स्कूल की तुलना ज्ञान के मंदिर से होती थी आज उन्हीं शिक्षा संस्थानों पर प्रश्न चिन्ह है?
अगर हम चाहते हैं हमारे देश की उन्नति हो, विकास हो और हमारा देश विश्व मैं प्रथम स्थान प्राप्त कर सके, तो केवल शिक्षा ही वह एकमात्र साधन है ,जो हमें उस मुकाम तक पहुंचाने में हमारी सहायता कर सकती है। इसलिए जरूरत है ना केवल शिक्षा के आधुनिकरण की बल्कि उसको सहज रूप से सभी को प्राप्त कराने की।
शिक्षा तो बहुमूल्य है। उसका मूल्य केवल धन के आंकड़ों से ना करें बल्कि उन मासूम बच्चों के जीवन से करें जिनके आप रचिता हैं।