" 😭😭 अभिभावकों कि दुर्दशा 😭😭
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क्या हो नहीं सकता....
सरकारी विद्यालयों में सुधार ?
विवश लाचार नन्ही आत्माओं की ,
ना जाने कब कैसे होंगी उनकी उद्धार ।
तीन चार टिविसन हुआ ज़रुरी ,
अस्मर्थ अभिभावक टुट गये ,
अरमानों को बच्चे रखें ताख पर ,
स्पर्श हुआ और फिसला फिर फूट गये ।
हर वर्ष सिलेबस बदल रहे हैं ,
कमीसन को चस्के लगें है ,
कक्षा परिवर्तन भी कम नहीं ,
कमीसन के डुनेसन संगे है ।
किसी तरह माध्यमिक पहुंचते हैं सारे ,
उच्च माध्यमिक चिन्ता आमंत्रण ,
तीर्थ यात्रा आसान है प्यारे ,
पूर्ण ग्रेजुएशन संकट के प्रांगण ।
अभिभावक के आय बारह हजार ,
शिखर पर पहुंचा मंहगाई बाजार ,
किराए के है ठौर ठिकाना ,
माझी फंसा कहीं दूर मजधार ।
नैया में छिद्र अवस्था बीमार ,
साहस को बिटोरे थी छोटी सी आश ,
तैरना भी पड़ें चाहें कुछ दूर ,
पहुंचाना तो होता उस किनारे के पास ।
शिक्षा बाजारीकरण के कारण ही ,
हुई अवस्था ऐसी ,
मन का जोड़ बोझ ढो रहा ,
ठीक गदहे के वैसी ।
सज़ा बना अभिभावकों कि ,
सज़ा मियाद अनिश्चित काल ,
फुर्सत में जब भी होते अकेले ,
धरते है हाथों पे वो अपनी गाल ।
कभी कभी झिझक जातें ,
स्वयं को लगते धिक्कार ,
फफक फफक कर रो पड़ते ,
है गलती किसकी आखिरकार ।
ना जाने बन्द कैसे होंगे ,
सोचा समझा शिक्षा बाजार ,
राष्ट्र अवनती के एक ये भी कारण ,
वैसे तो है हजार हजार ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल २८.११.२०२२.