23 मार्च 2017
विधाता छन्द में एक मुक्तक.....निहारूं आप को हरदम, दिलाशे की उम्मीदों से सजा लूँ आहटों में भी, भरोषा पढ़ कसीदों से नक्काशी खुद कहाँ कहती, मुझे गढ़ मोड़ दे कोईभुलावे में नहीं चलती, कभी हंसियाँ मुरीदों से।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी