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आधा सच

7 अप्रैल 2024

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आधा सच ''हो या ''आधा झूठ'', यह एक फरेब है ,मानव को उलझाने का , न ही उसे वास्तविकता का पता चल पाता है, उस ''अधूरे सत्य'' को लिए घूमता रहता है। मीठे और धीमे विष की भांति ही 'अधूरा सत्य' है किंतु पूर्ण सत्य छुपाया ही इसलिए जाता है ताकि पूर्ण सत्य की जानकारी ना हो। 



सत्य तो सत्य होता है, उसको काटा नहीं जा सकता किंतु उसे आधा अधूरा दिखाया, अवश्य जा सकता है ताकि मानव भ्रमित रहे और वह न ही' पूर्ण सत्य जान' सके और न ही, झूठ का विरोध कर सके। यह स्वार्थी लोगों द्वारा भ्रमित करने का एक जरिया है। इसे धोखा भी कह सकते हैं। कई बार हम सत्य को इसलिए छुपा जाते हैं, कि हमें अपने प्राणों की या किसी अपने विशेष के प्राणों की रक्षा करनी होती है या उसे बचाना होता है ,हमारे लिए वही झूठ सर्वोपरि है। अच्छा लगता है ,किंतु वही झूठ दूसरे को हानि पहुंचाता है,वह शारीरिक या मानसिक भी हो सकती है और आर्थिक भी हो सकता है। वह हानि किसी भी प्रकार की हो सकती है। पूर्ण सत्य बता देने से, दूसरा व्यक्ति अवश्य ही उसका विरोध करेगा। हम नहीं बताएंगे या किसी दूसरे के माध्यम से पता चले तब भी, यही होना है। जिसके कारण दुश्मन भी बन सकते हैं। इसीलिए चाशनी में घोला हुआ ''अर्ध सत्य ''ही सही रहता है। ताकि वह व्यक्ति भ्रमित रहे और दूसरा अपनी सुरक्षा भी कर सके। एक तरीके से देखा जाए तो,' अधूरा सच' एक' कवच 'का कार्य भी करता है। 

खैर जो भी हो, सही- गलत, सच और झूठ इनका कोई पैमाना नहीं है। यह सिर्फ हमारी सोच और हमारे स्वार्थ पर निर्भर करता है। हम अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक नीचे जा सकते हैं ? ऊपर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। किस हद तक हम सत्य को छुपा सकते हैं? कई बार सत्य को छुपाना, हमारी मजबूरी भी हो जाती है। हम जानते हैं, कि सत्य क्या है ? किंतु झूठ बोलना हमारी फितरत न होते हुए भी, हमें झूठ बोलना पड़ जाता है। 

देश की सरकार, देश के व्यापार बहुत से ऐसे कार्य हैं जो अर्ध सत्य पर ही चल रहे हैं। आम जनता को तो पूर्ण जानकारी होती ही नहीं कि क्या सही है और क्या गलत और जब भी जानकारी हो जाती है ,तो तहलका मचता है, विरोध होता है। इसीलिए आम जनता भ्रम और धोखे का जीवन ही जीती है। सरकार कोई भी आए और कोई भी जाए।भुगतना आम जनता को ही पड़ता है। हर सरकार दूसरी सरकार पर दोषारोपण करती है, किंतु सत्य यही है, कि आम जनता किस पर विश्वास करें किस पर नहीं ,उसे हर बार ही महंगाई का सामना करना पड़ता है। विश्वास के साथ वह सरकार चुनती है और अगले ही कुछ वर्षों में उसे अपनी गलती का एहसास होता है, फिर वह इस भ्रम में कुछ वर्ष बीता देती है कि अगली सरकार उसकी पसंद की होगी, वह हमारी सहायता करेगी किंतु सभी'' थाली के चट्टे बट्टे हैं।'' आम जनता की परेशानियों से आम जनता से ,किसी को कोई लगाव नहीं रहता। आम जनता होती ही इसीलिए है, कि वह अर्ध सत्य को लिए, जीती रहे। जिसे राजनीति खेलनी होती है ,वह खेल कर चला भी जाता है। आम जनता अपनी शक्ति को पहचान ही नहीं पाती है। कि यदि वह टैक्स ना भरे, यदि वह वोट न दे ,तो जितने भी उच्च पद पर आसीन व्यक्ति हैं और अपने अहंकार में मद में चूर हैं उन्हें धूलधूरिस्त होने में समय नहीं लगेगा किंतु जनता अपने आपको बांटती जाती है।'' कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर,अमीरी -गरीबी के नाम पर और अब पार्टियों के नाम पर ,ये पार्टियां कोई किसी की नहीं होती सभी अपना कार्य कहूं या स्वार्थ पूर्ण कर चलते बनते हैं। ठगी सी रह जाती है ,तो जनता !

मैं भी न ,कहाँ से कहाँ चली गयी ?अब नजदीक ही देख लीजिये !सभी को भरम रहता है ,लेखन से कुछ लोगों ने अच्छा पैसा कमाया होगा किन्तु ये भी'' अर्ध सत्य ''है ,क्योंकि कुछ लोग ही कमा रहें हैं जिसके कारण भर्मित हो अन्य भी जुड़ जाते हैं। पूर्णता की आस में उस ''अर्ध सत्य ''को जानते हुए भी लिख रहे हैं।गा रहे हैं ,नाच रहे हैं। ऐसे ही बहुत से एप हैं ,जो लोगों के शौक को अपने लाभ के लिए भुना रहे हैं।  
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हमारे जीवन में अथवा समाज में हम कुछ ऐसा देखते या सुनते हैं जिन पर कई बार हम सहमत होते हैं और कई बार सहमत नही होते तब उस विषय पर हमारे विचार हमारी सोच उसके पक्ष या विपक्ष में हमें लिखने पर बाध्य कर देती है। कई बार किसी चीज की जानकारी हम लेख द्वारा ही जान सकते हैं या किसी को जानकारी दे भी सकते हैं। अपने विचारों से किसी को अवगत कराना चाहेंगे तब भी लेख ही ऐसा माध्यम है। उन विचारों से कुछ लोग सहमत हो सकते हैं, कुछ सहमत नहीं हो सकते सभी की अपनी अपनी सोच है। किसी को बाध्य नही किया जा सकता किंतु अपने लेखों द्वारा दूसरे व्यक्ति तक अपने विचार पहुंचाए अवश्य जा सकते हैं। अपनी समीक्षाओं द्वारा उन विचारों पर अपना मत सकते हैं।
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