गुरु परंपरा की रीत निराली,
गुरु ही है ,सब कर्मों पर भारी,
गुरु ही मेरा मान है ,मेरी पहचान है।
गुरु बिन ,सब काज अधूरे ,
ऐसे गुरु को बारंबार प्रणाम है।
स्नेहसिक्त , ऐसे प्रभु के चरणों में कोटि-कोटि नमस्कार है।
हे मेरे गुरु ! तुम्हें क्या कहूं ? माधव !कहूं या शिव ! ॐ कहूँ या निरंकार !मेरे लिए तो ,सब कुछ तुम ही हो। तुमने मेरे अंदर ज्ञान की ज्योति जलाई है। मेरे लिए सब कुछ तुम ही हो। यह इश्क, मोहब्बत ,लगाव ,प्रेम की ज्योति , जो कुछ भी है ,तेरा ही दिया है और यह प्रेम तुझसे हो गया है । अब यह दुनियावी क्रियाकलाप ,कर्मकांड मेरे वश में नहीं। गुरु से ,यह आशिकी यूं ही नहीं मिलती इतनी आसान भी नहीं है। यह तो एक सौदा है ,इस रूहानी इश्क के बदले दुनियावी मोह को भुला देना है। रात -दिन बस उसका ही सुमिरन करना है ,हर सांस पर तेरा ही सुमिरन है। बाहरी पूजा में नियम है ,किंतु तेरे इश्क में श्वास -श्वास में हर वक्त तेरा ही सुमिरन है।
गुरु ने ऐसा ज्ञान दिया ,भवसागर से पार करने का , बेड़ा हमें थमा दिया। हम सब का इस योनि में ही बेड़ापार किया गुरु ज्ञान का वह रूप है ,जो आध्यात्म की ज्योति जगाता है। हमारा मार्ग प्रशस्त करता है ,उस राह पर चल हम अज्ञानी ,अपने जीवन का सुधार करते हैं और मोह माया में फंसे ,इस आत्मा रूपी जीव को शांत करते हैं। वही ज्ञान हमारे मन के अंदर की कलुषता को मांझकर चमकाता है इसीलिए दिल में मेरे गुरु का वास है।
तेरे इश्क का नशा जो एक बार हो जाए ,उसे तेरे सिवा अब नजर कहां कुछ आए ? ऐसा ही गुरु चेले का नाता है लोग कहते हैं -'यह कैसी गुरु प्रेम की मस्ती है ,जो चढ़ती है ,उतरती नहीं, जिनकी नज़रों में उसकी छवि समा जाए। तब यह दुनिया की माया उसे कहां नजर आए ? मुझे तो अब नजरों में मेरा ही गुरु दिखता है। इस दुनिया के मोह- माया के बंधन से दूर , मेरा अपने गुरु से नाता है।वो हर पल मेरा साथ निभाता है।