आओ !कहीं वादियों में खो जाते हैं, प्रकृति की सुंदरता का अनुभव करते हैं। ऐसी प्रकृति जहां पर स्वर्ग का आभास हो। सुंदर-सुंदर,मनभावन पुष्प खिले हों , झील का किनारा हो, लोगों का रहन-सहन भी अलग है और शिकारा हो ? सेबों के बागान ,सुनने में बहुत अच्छा लगता है। ऐसा ही एक हमारे देश का हिस्सा है , ''कश्मीर'' बचपन में हमने उसके बहुत सारे चित्र देखे थे। उसके विषय में पढ़ा भी था -और कहा जाता था- ''कि पृथ्वी पर,यदि कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है ,यहीं है।
चलचित्रों में भी बहुत से दृश्य देखे, उनमें फिल्माए गए दृश्यों को देखकर मन झूम- झूम उठता था। ऐसा लगता था -जैसे हम उन वादियों में हो कहीं खो गए हैं ,एक गाना उस समय बहुत प्रसिद्ध था-
'''कश्मीर की कली हूं मैं, मुझसे न रुठो ,बाबूजी !मुरझा गई तो फिर ना खिलूंगी कभी नहीं ,कभी नहीं ''
उसे देखकर लगता था, जैसे हम उन कश्मीर की वादियों में, कहीं अपना मन छोड़ आए हैं।
अभी-अभी एक गाना फिर से जुबान पर आ गया -
''मैं चली ,मैं चली, पीछे-पीछे जहां ये न पूछो! किधर..... ये न पूछो कहां ?
यही तो होता है, मन कुछ ज्यादा ही तीव्रता से भागने लगता है। कल्पनाओं के घोड़े अधीर हो ,दौड़ लगा रहे हैं। जब हम थोड़े बड़े हुए ,हमें यह एहसास हुआ कि कश्मीर घूमने के लिए तभी जाते हैं जब किसी की शादी हो जाती है ,तब कश्मीर ही घूमने जाते हैं , तो हमारा भी, इरादा कुछ ऐसा ही बन गया था। हमने किसी से पूछा नहीं ,आसपास के माहौल, वातावरण को देख ,सुनकर यह अंदाजा लगा लिया -विवाह के पश्चात ,सभी लोग ''कश्मीर की वादियों '' में घूमने जाते हैं। अब हम सहजता से ,किसी को बिना बताये ,उस पल की प्रतीक्षा में थे। कब हमारा विवाह हो ?और हम घूमने जाएँ। जब हम बड़े हुए ,हमारा विवाह भी हुआ,ये कोई विशिष्ट बात नहीं है ,एक न एक दिन सभी को इस दौर से गुजरना पड़ता है। हमने कोई तीर नहीं मार लिए ,विशिष्ट बात यह थी, कि हम कश्मीर जाने के लिए स्वतंत्र थे।उन्हीं दिनों ये गाना भी अक्सर चलता था -
ये हसीं वादियां, ये खुला आसमान !आ गए हम कहां ? ऐ मेरे साजना
किन्तु इसे हमारा दुर्भाग्य कहिये , इतने वर्षों की हमारी प्रतीक्षा निष्फल गयी। उस समय वहां का माहौल बहुत ही बिगड़ा हुआ था। आतंकवाद छाया हुआ था, ऐसे में बाहर घूमने का मतलब है ,शायद टुकड़ों में वापस आना। कुछ भी अनहोनी घटना की आशंका से, न ही हमने कुछ कहा, और न ही किसी ने सोचा किन्तु उपर्युक्त गाना किस तरह हमारे मन को जला रहा होगा ?हम ही जानते हैं। पतिदेव दो बार अवश्य घूम आये। नहीं ,नहीं उन्हें गलत मत समझिये ! उस समय वे हिन्दू परिषद के युवा नेता थे। वे कहीं भी भटक सकते थे।
कश्मीर हमारी कल्पनाओं में, समाकर रह गया हालांकि हम महाराष्ट्र घूम कर आए ,आंध्रा गए किंतु कश्मीर अभी भी वही का वहीं रह गया। एक इच्छा थी , डल झील के किनारे बैठें या फिर उसमें जो हाउसबोट होते हैं ,उन पर यात्रा करें और इसी तरह से फिल्मी गाने गुनगुनायें। बहुत जगह घूमने गए पर कश्मीर नहीं गए। उसके किस्से बहुत सुने कश्मीर क्या से क्या हो गया?अब तो चलचित्र की शूटिंग भी विदेश में होने लगी। हमारा होकर भी कश्मीर लग रहा था ,हमारा नहीं है। बात आई गई सी हो गई। कोई बात नहीं, हम उस बात को भूल ही गए, किंतु कुछ लोगों को तो चुल उठती रहती है न। आज ''कश्मीर की सैर'' का शीर्षक ही दे दिया।पुराने जख्मों को कुरेद डाला ,जब कुरेदा ही है ,तो बात दूर तलक़ जाएगी ही।
अब आप ही बताइए !इतनी ठंड में, रजाई से तो निकला नहीं जा रहा ,लोग, कैसे कश्मीर घूमने जाएंगे ? इस वक्त तो यहीं कश्मीर नजर आ रहा है ,गरमा-गरम चाय, कॉफी, रजाई की गर्माहट, सूप , चिड़ियों की चहचाहट , बगीचों में खिले पुष्प ! किस चीज की कमी है ?यहाँ !पहाड़ियों की, वह तो घर आजकल पहाड़ जैसे बन ही गए हैं। इतने ऊंचे -ऊंचे घर बन गए हैं कि चंदा मामा को देखने के लिए भी, जितनी ऊंचाई पर चढ़ा जा सके ,चढ़ना पड़ता है। उन्हें मेरी खिड़की में झाँकने के लिए ,न जाने किधर -किधर को घूमकर आना पड़ता है ?वैसे तो आजकल इतनी ठंड के कारण ''सूर्यदेव'' ही कहाँ निकल रहे हैं ? दोपहर में दो बजे के करीब घर से बाहर आये थे किन्तु उनकी माताश्री ने ,तुरंत ही अंदर खींच लिया। आखिर माँ तो माँ होती है ,बच्चे की सेहत का प्रश्न है। कश्मीर का वह सपना हालांकि अधूरा हैं, किंतु अब इच्छा ही नहीं होती, क्योंकि वह इस ठंड में यही पूरे जो हो रहे हैं। वैसे भी मैंने आज प्रातःकाल ही ''भीष्म प्रतिज्ञा '' जो कर ली थी। जाऊंगी तो ,अपनी कमाई के पैसों से ,चलो !चलती हूँ। कभी कश्मीर गयी तो अवश्य ही आप लोगों को ,उसके सौंदर्य उन वादियों ,अपने अनुभवों से परिचित कराऊंगी। धन्यवाद अपना इतना महत्वपूर्ण समय देने के लिए