सहज, सरल सपना, सिर्फ निद्रा में ही,बंद आँखों से देखे जा सकते हैं और नींद में ही पूर्ण हो सकते हैं। नींद में तो न जाने, हम राजा भी बन जाए, कठिन से कठिन कार्य पूर्ण कर दें। सोते हुए ,ये सपने बड़े हसीन लगते हैं। कभी-कभी यही सपने डरा भी देते हैं क्योंकि इन सपनों का संबंध हमारे मन से ही होता है। हमारा मन यदि प्रसन्न है, तो हम नींद में भी अच्छे सपने देखते हैं और यदि हमारा मन द्रवित है , तब हम डरावने , भयंकर सपने देखेंगे,उन सपनों में हम इतने खो जाते हैं कि कभी -कभी रोने या हँसने भी लगते हैं। यह मन ही तो है, जागते हुए भी और सोते हुए भी हमें उड़ाकर न जाने कहां से कहां ले जाता है ?
सपनों को देखना और सपनों को जीना दोनों ही अलग-अलग पहलू हैं ,सपने तो कोई भी देख सकता है, सपनों पर किसी का वश नहीं, किंतु जब सपने पूर्ण करने की बारी आती है ,तब इंसान को पता चलता है यही सपने कितने कठोर हैं? कितने निर्दयी हैं ? सपना पूर्ण करना आसान नहीं किंतु ताउम्र इंसान उन्हीं सपनों के पीछे भागता रहता है। कम उम्र में, जब बच्चा छोटा होता है ,तब उसके सपने सहज और सरल होते हैं। छोटे-छोटे सपने, पूरे भी हो जाते हैं किंतु जैसे-जैसे उसे सामाजिक ज्ञान होने लगता है, लोगों से मिलता है ,बातें करता है। तब उसके सपनों का स्वरूप बदल जाता है, तब उसके पश्चात वह बड़े स्वप्न देखता है ,ऐसे सपने देखता है जिन्हें पूर्ण करने में उसकी जिंदगी बीत जाए।
कभी-कभी किसी के सपने पूर्ण हो भी जाते हैं लेकिन यह बात वह वही बता सकता है ,जिसने उन सपनों के लिए न जाने, कितना परिश्रम किया है ? और न जाने कितने त्याग भी उसे करने पड़े होंगे। उन्हीं सपनों की खातिर,कई बार वह अपने रिश्तों को भी खो देता है। बालकपन में ,बच्चों की दुनिया बहुत छोटी होती है उसकी दुनिया उसके परिवार माता-पिता ,बहन- भाइयों तक या अन्य रिश्तेदारों तक ही सीमित होती है इसीलिए उसके सपने भी छोटे-छोटे होते हैं ,जिन्हें शायद परिवार वाले ही पूर्ण कर दें किंतु उन सपनों की नींव बचपन में ही रखी जा चुकी होती है ,जिनसे माता -पिता के स्वप्न भी स्वतः ही जुड़ जाते हैं। जैसे ही बच्चे का दायरा बढ़ता जाता है। वैसे ही उसके सपने भी बड़े होने लगते हैं जो' सहज' नहीं रह जाते , ना ही उसे 'सहज 'रहने देते हैं। उनकी पूर्ति के लिए आशावान हो जाता है।
किंतु सपने तो सपने हैं, इन्हीं सपनों के लिए तो इंसान जीता- मरता है, और इसी के साथ, उसका मान -अपमान,लाभ -हानि सब जुड़ता चला जाता है। अथक प्रयास के बावजूद भी,जब वह सपने उसे दुर्लभ लगने लगते हैं। तब वह ख्वाबों में उन सपनों को पूर्ण करने का प्रयास करता है क्योंकि उसका विचलित मन, कहीं ना कहीं उसे पूर्णता की ओर ले जाने का प्रयास करता है। अवचेतन मन उन सपनों को पूर्ण करना चाहता है, जो सहज ही पूर्ण हो जाते हैं , और जब आंख खुलती है, वास्तविकता से परिचित करा देती है। कि सोते हुए सपने देखना सरल है किंतु उन सपनों को जाग कर पूर्ण करना अत्यंत कठिन है।