इज्जत यानी सम्मान ! मान ,मर्यादा !आदर ! प्रतिष्ठा ! आबरू !
सम्मान !हमें किस तरह से प्राप्त होता है ? पैसे से, उम्र से, या हमारे रुतबे से , कभी-कभी हम, अपने बाहुबल या धन के जोर पर किसी को दबा देते हैं या किसी दूसरे से ,मान और प्रतिष्ठा में अधिक होते हैंऔर वह हमारा सम्मान करने लगता है। हम उसे ही इज्जत समझ बैठते हैं, कि देखो , हमारी कितनी इज्जत कर रहा है ? किंतु वह यह नहीं समझ रहा है कि वह मजबूरीवश या तुम उससे शक्ति में अधिक हो इसीलिए तुम्हें सम्मान दे रहा है। कोई अधिकारी अपने बड़े पद पर है या कोई नेता है , उसे सम्मान मिलता है ,उसके पद के लिए ,जब तक वह कुर्सी पर है ,सम्मान का अधिकारी रहता है, कुर्सी से उतरते ही, उसकी औकात उसे दिखा दी जाती है। क्या यह इज्जत है ? नहीं, यह उसके पद का सम्मान था। उसका नहीं। सम्मान तो तब होता है , जब उसके कुर्सी पर न रहने पर भी, लोग उसकी इज्जत करते हैं , उसके पीठ पीछे भी उसकी सराहना करते है ,असल में यही उसकी इज्जत है ?
कोई पैसे वाला है, उसके बहुत से नौकर लगे हुए हैं, उसको सम्मान देते हैं , उसके अधीनस्थ होकर, अपना कार्य करते हैं , क्या यह इज्जत है ? और आदमी खुश होता है कि लोग मेरा सम्मान कर रहे हैं, मुझे इज्जत दे रहे हैं। उसकी यह इज्जत, उसके पैसे से है। वह अपना कर्म करते हैं, इतनी मेहनत करते हैं ,उसके बदले उन्हें'' मेहनताना'' मिलता है। वह उनकी रोजी-रोटी का मालिक है , इसीलिए उसे इज्जत दे रहे हैं। यदि वे उसके नौकर नहीं होते, तब भी क्या वह उसका, उतना ही उसका सम्मान करते। इज्जत उस व्यक्ति की नहीं है, जिसके पास पैसा है, जिसके पास रुतबा है, जिसके पास शक्ति है क्योंकि यह सभी जब तक उसके पास है तब तक उसकी इज्जत है। उसके पश्चात कोई उसे पूछेगा भी नहीं , यह सब बहुत से लोग जानते हैं लेकिन फिर भी भ्रम में जीना चाहते हैं।
इज्जत व्यक्ति के कर्मों से उसे मिलती है, यदि वह अपने अधीनस्थ व्यक्तियों के साथ मधुर व्यवहार करता है , काम के समय पर काम भी कर लेता है किंतु उनकी परेशानियों को भी समझता है, उसके पद पर न रहने पर भी, उनके मन में उसके प्रति जो सद्भावना होती है , वही उसे इज्जत दिलाती है। जिस तरह धन कमाया जाता है ,उस तरह ही'' इज्जत भी कमाई जाती है,किन्तु अपने कर्म ,व्यवहार और सोच द्वारा।'' जबरदस्ती छीनी नहीं जाती ,' इज्जत 'एक भावना है , जो व्यक्ति के व्यवहार से, दूसरे व्यक्ति के मन पर अपना प्रभाव छोड़ जाती है, हृदय से स्वतः ही उसके प्रति सम्मान उमड़ने लगता है।आदरभाव जाग्रत हो उठता है। वरना पीठ पीछे तो नेताओं को भी गालियाँ मिलती हैं।
एक तरह से देखा जाए तो इज्जत और सम्मान दोनों शब्दों में भी मामूली सा अंतर है, यदि हम कोई श्रेष्ठ कार्य करते हैं , जैसे लेखन ,समाज सेवा, कोई अच्छा व्यवसाय, जो आम जनता या लोगों के हित में हो। तब तुम्हें सम्मान मिलता है। समाज के सामने तुम्हें 'सम्मानित' किया जाता है। इसमें भी आपका कर्म ही ,उस सम्मान को दिलवाने में अपना योगदान देता है , किंतु इस सम्मान को प्राप्त करने के पश्चात भी ,यह आवश्यक नहीं की सभी के हृदय में आपके प्रति सम्मान और इज्जत हो क्योंकि ऐसे'' सम्मान पत्र ''भी आज पैसे के बल पर मिल जाते हैं।
लोगों को अक्सर कहते सुना गया है-'' इज्जत दोगे तो इज्जत मिलेगी।'' कई बार ऐसा होता है ,जो बड़े-बड़े पदाधिकारी हैं, मंत्री हैं , उनके कार्यों को देखकर ,बाहरी जनता उन्हें सम्मान देती है, किंतु घर में उनकी तनिक भी इज्जत नहीं। जो कार्य वह देश के लिए श्रद्धा से नतमस्तक होकर करते हैं। उसके परिवार वालों को नहीं लगता, कि उनके लिए भी यह सम्माननीय हैं । अपने परिवार वालों के लिए ही तो कमाता है, रात दिन मेहनत करता है, एक मुकाम हासिल करता है , किन्तु परिवार वालों के मन में वह सम्मान नहीं आ पाता है क्योंकि जो व्यवहार वह बाहर करता है ,उसके विपरीत व्यवहार में घर में करता है। कई बार ऐसा दोहरा जीवन भी जीते हैं लोग ! संपूर्ण जिंदगी इज्जत के लिए, न्योछावर कर देते हैं और लोगों के दिलों में जगह बना भी लेते हैं , किंतु उनकी तनिक सी भी गलती या इस परिवार से हुई, गलती !उसके संपूर्ण जीवन की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने में, तनिक भी देर नहीं लगती। जो सम्मान बाप -दादा ने कमाया, बच्चों के व्यवहार से सब नष्ट हो जाता है।
इसीलिए बच्चों में आरंभ से ही ,अच्छे संस्कार, और उनके मन में अच्छी विचारधारा , के लिए अच्छी शिक्षा का प्रबंध किया जाता है। घर का वातावरण भी इसीलिए अच्छा करने की आवश्यकता है। ताकि जो हमारे बड़ों ने जो सम्मान प्राप्त किया है वह मिट्टी में ना मिल जाए। कहा जाता है, जो व्यवहार बड़े करते हैं, वही बच्चे भी सिखते हैं , किंतु इंसान एक सामाजिक प्राणी है, समाज में रहकर अच्छे और बुरे लोगों से जुड़ता है अपने अनुभव के आधार पर, वह उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करता है। किंतु परिवार में, कम से काम ऐसा व्यवहार तो करे, जो बच्चों पर गलत असर ना डालें। कई बार बड़े ही अपने से बड़े बुजुर्गों पर व्यंग्य करते हैं, उनकी बातों की अवहेलना करते हैं, वह यह भूल जाते हैं कि उनका यह व्यवहार उनके बच्चों पर क्या असर डाल रहा है ? आगे उन्हें भी बुजुर्ग ही बनना है , दूसरे किसी व्यक्ति ने यदि कोई कार्य किया है, तो उसकी मेहनत को नजरअंदाज ना करें। कम से कम उन्हें यह तो एहसास होना चाहिए किआज जिस मुकाम पर वह व्यक्ति है, आज अपनी ही मेहनत पर यहां तक पहुंचा है , उसे कार्य की सराहना तो कर ही सकते हैं।
इज्जत किसी की बपौती नहीं, कि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आए, अपने हिस्से की इज्जत इंसान को स्वयं कमानी होती है। किंतु आजकल बाहरी वातावरण, कुछ तो घरों में भी ऐसा हो रहा है , बच्चे माता-पिता का ही सम्मान नहीं करते , उनके मन में उनकी ही इज्जत नहीं है। क्या माता-पिता अपने बच्चों के लिए संपूर्ण जीवन नहीं लगा देते हैं ? तब उनके मन में उनके प्रति सम्मान क्यों नहीं रहता ? इज्जत क्यों नहीं रहती ? क्योंकि बाहरऔर कहीं -कहीं घरों में भी वातावरण , उच्चश्रंखल , विद्रोही , धन के प्रति आकर्षण , उन्मुक्त जीवन जीना सिखाता है। उनकी सोच में स्वार्थ ,लालसा इतनी भर जाती है कि वह अपने उन लोगों का ही सम्मान नहीं कर पाते हैं, जो उन्हें पालते -पोसते हैं और बड़ा करते हैं।घर की बहु -बेटियां भी घर की इज्ज़त हुआ करती थीं ,कुछ लोग अभी भी मानते हैं ,किन्तु आने वाली पीढ़ी इस बात को कितना सम्मान देगी ? ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
कुछ वाक्यांश - इस तरह से बन सकते हैं -मोदी ने जी ने, जो हमारे देश की'' प्रतिष्ठा ''बढाई है, अपने देश में ही नहीं ,बाहरी देशों में भी जो'' सम्मान ''प्राप्त किया है, वह आज तक कोई नहीं कर सका।
हमारे देश के सैनिक, अपने देश के'' मान'' के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहते हैं ,अपनी जान की भी परवाह नहीं करते।
बेटियां अपने माता-पिता के '' मान- सम्मान'' और'' इज्जत के लिए ''अपनी जान की भी परवाह नहीं करती।
आज का नेता जागरूक हो रहा है ,अपने देश की खोई ''प्रतिष्ठा ''को पुनः लौटाने के लिए प्रयासरत हैं।
सारांश यही है, ''अपने कर्मों के आधार पर इज्जत कमाई जाती है, बपौती में मिलती नहीं।'' यदि तुम्हारा धन देखकर ,तुम्हारा पद देखकर, तुम्हारी शक्ति देखकर कोई तुम्हें सम्मान दे रहा है, तो वह इज्जत नहीं, जरूरी नहीं कि उसके हृदय में भी, तुम्हारे प्रति वही सम्मान हो , जो वह दिखला रहा है। ''
'' इज्जत की खातिर लोग, मर मिटे, हो गए कुर्बान !''