जीवन सुचारु रूप से चल रहा था, सब कुछ सही तो था। अचानक ही ऐसी घोषणा सुनकर, सब हतप्र्भ रह गए। सबकी जुबां पर एक ही सवाल था -यह कैसे हो गया ? यह क्या कर दिया ? किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था , सबके दिलों में घबराहट छा गई। किसी ने किसी के मुंह से सुना तो, किसी ने टेलीविजन पर देखा, किसी को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था, लग रहा था -जैसे कोई मजाक कर रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है ?जब आठ नवंबर की रात्रि को बताया गया ,आज से 500 व 1000 के नोट बंद हो गए हैं। ऐसा कैसे हो सकता है ?कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ? कुछ लोग तो, अपने पैसे, जो रखकर भूल ही जाते हैं। कुछ महिलाओं ने भी अपने नोट छुपाए हुए थे, जो भविष्य के लिए संजोकर रखे गए थे। वे उनके पति की नजर में गुमशुदा थे। कुछ पतियों ने अपने पैसे छुपाए हुए थे। कुछ लोगों ने तिजोरी में छुपाए हुए थे, जो स्वयं उनकी नजर में गुमशुदा हो चुके थे, उन्हें समय ही नहीं था यह देखने के लिए कि उनके पास कितने नोट हैं ? जिनकी अब तलाश थी।
अभी भी उम्मीद बाकी थी , उन नोटों को बदला जा सकता था। घर की तिजोरी में, किताबों में, अखबार के नीचे, कुछ डिब्बे में छुपे, कुछ जेबों के अंदर से निकलकर नोट आ रहे थे। इसे सोचकर ऐसा ही कह सकते हैं -''कौड़ी -कौड़ी माया जोड़ी,भारी बोझ धरा सर पर ,किस बिध हो हल्की। ''इसमें मैंने कुछ शब्द हटाए हैं क्योंकि हमें तो वही बोझ लग रहा था जो पैसा अपने पास था ,कि कहीं व्यर्थ न हो जाये और मन में प्रसन्नता भी थी, चलो ! अभी नोट बदले जा सकते हैं ,इनको नया रूप दिया जा सकता है। किंतु जिनके नोट बोरियों में भरे थे, तहखानों के अंदर बंद थे, उन्हें स्वयं तलाश थी , उस जगह की, जहां वह अपने को ''गुमशुदा'' कर सकें , कोई उन्हें ढूंढ ना सके। मेहनत से तह बना कर रखे गए , वे नोट , जो अभी तक अपनी मालिक से भी'' गुमशुदा'' हो चुके थे। वह इस जहां से भी ''गुमशुदा'' होने के लिए बेचैन थे। उनकी क्या कीमत रह गई थी ? वह सिर्फ एक कागज की रद्दी बन चुके थे। जिसने एक-एक पैसा मेहनत से इकट्ठा किया, आज वह बेमानी हो गया था। क्या मिला ? ऐसा करके, कुछ कारगर भी हुए ,जिसके कारण सोने के दाम बढ़ गए , जिनके पास पैसा नहीं था ,उनके पास भी अचानक से न जाने कितना पैसा आ गया ? लोग नोट बदलने का ही व्यापार करने लगे। कितनी ज्यादा जद्दोजहद हो रही थी ?इस जिंदगी से, या फिर नोट बदलने के लिए, जिंदगी से लड़ रहे थे , कुछ गैर की परेशानी का लाभ उठा रहे थे।गरीब जनता ही ,व्यापारी बन चुकी थी ,या विवश थी कोई नहीं जानता।
वे यादगार दिन ! किसी के लिए दुख का पैगाम लाए , किसी के लिए परेशानी का सबब बन गए, फिर भी हजार और 500 के ''नोट गुमशुदा'' हो गए। इतनी जद्दोजहद के पश्चात भी उन्हें गुमशुदा होने से कोई ना बचा सका। न जाने नोट आजकल कहां गुम हो रहे हैं ? अब तो 2000 के नोट भी नहीं नजर आ रहे हैं।